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जैन-विभूतियाँ संग्रह, तत्त्वार्थ सूत्र, पंचास्तिकायसार, पुरुषार्थसिद्धयुपाय, गोमट्टसारजीवकाण्ड, गोम्मट्टसार कर्मकाण्ड, आत्मानुशासन, समयसार, नियमसार, गोमट्टसार कर्मकाण्ड भाग 2, परीक्षामुखम्, तत्त्वार्थ सूत्र के पाँचवे अध्याय का विशिष्ट विवेचन, जैन धर्म के अनुसार ब्रह्माण्ड। यद्यपि सभी प्रकाशनों में अजित प्रसाद जी का योगदान रहा, पुरुषार्थ सिद्ध्युपाय और गोम्मटसार कर्मकाण्ड, भाग 2, की सम्पूर्ण टीका उनकी लिखी हुई है। भावपाहुड और आप्तमीमांसा की टीका भी अजित प्रसाद जी ने लिखी थी। यह उनके जीवनकाल में नहीं प्रकाशित हो पाई। उनके कनिष्ठ पुत्र कैलाश भूषण जी ने 'भावपाहुड' को पुन: सम्पादित कर गत साल छपवा दिया। 'आप्त मीमांसा' अभी छपनी बाकी है।
ब्रह्माचारी शीतल प्रसाद गोमट्टसार कर्मकाण्ड, भाग 2, के संयुक्त टीकाकार थे। इस टीका को समाप्त करने के लिए वह अजिताश्रम में एक वर्ष ठहरे। 23 जुलाई, 1926 को वह लखनऊ पधारे। ब्रह्माचारी जी का नित्य देवदर्शन का नियम था। अष्टमी व चतुर्दशी को ब्रह्माचारी जी का प्रोषधोपवास होता था। उस दिन वह सवारी का इस्तेमाल नहीं करते थे। 24 जुलाई, 1926 को चतुर्दशी थी। ब्रह्माचरी जी पैदल दर्शन करने यहियागंज गये और पैदल ही वापस आये। गरमी के मौसम में उनका इस प्रकार परिश्रम करना अजित प्रसाद जी को बहुत खटका। 25 जुलाई को इतवार था। उस दिन अजितप्रसाद जी बाराबंकी गये
और वहाँ से एक प्रतिष्ठा योग्य मूर्ति ले आये। उसी दिन अजिताश्रम में जिनबिम्ब स्थापित करके पूजन, भजन, आरती हुई। ब्रह्मचारी जी ने शास्त्रोपदेश दिया। इस प्रकार पूजन-आरती, शास्त्र सभा का नित्यक्रम अजिताश्रम में जारी हो गया।
27 जुलाई को अजिताश्रम में चैत्यालय की नींव खुदनी प्रारम्भ हो गई। पहली अगस्त को नींव की पहली ईंट ब्रह्माचारी जी ने जमाई। 16 नवम्बर से 18 नवम्बर तक मंत्र के आठ हजार जप होकर वेदी प्रतिष्ठा हुई। चौक पंचायत ने ब्रह्मचारीजी से आग्रह किया कि अजिताश्रम चैत्यालय के लिये मूर्ति पसंद कर लें और बाराबंकी की मूर्ति वापस करा दें। ब्रह्मचारी जी ने दो मूर्तियाँ पसन्द की और उन दो प्रतिष्ठित मूर्तियों