Book Title: Bisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Author(s): Mangilal Bhutodiya
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 452
________________ 424 जैन-विभूतियाँ 10. श्रीमती सुधा रामपुरिया जन्म पिताश्री पतिश्री : कोलकता, 1956 : जेठमलजी सुराणा : स्व. प्रदीपकुमार रामपुरिया : साहित्य रत्न शिक्षा सांस्कृतिक परिवेश में पली सुधाजी ने युवा पति की अकाल मृत्यु के बावजूद हिम्मत न हारी। श्वसुर साहित्य मनीषी श्री माणकचन्दजी रामपुरिया की सत्प्रेरणा से उन्होंने हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग की विशारद एवं साहित्यरत्न परीक्षाएँ उत्तीर्ण की एवं काव्य-सृजन जारी रखा। धार्मिक एवं साहित्यिक पुस्तकों के पठन-पाठन एवं महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थलों की यात्राओं को वे जीवन का संबल मानती हैं। परिष्कृत रूचियों की धनी सुधाजी समाज एवं साहित्य सेवा के लिए कृत-संकल्प हैं। . 11. डॉ. कान्तीलाल हस्तीमल संचेती डॉ. के.एच. संचेती एक ऐसी विलक्षण हस्ती हैं, जिनकी गिनती विश्व के औरथोपेडिक्स चिकित्सा क्षेत्र के शिखर पुरुषों में आती है। 24 जुलाई, 1936 में साधारण व्यापारी परिवार में जन्मे डॉ. संचेती में राष्ट्र प्रेम या स्वदेशी की भावना बचपन से ही आप्लावित थी। समाज के साधारण वर्ग के लिए उनके हृदय में अपार करुणा का श्रोत है। अपने कार्य में निष्ठा, समर्पण तथा उत्कर्ष के लिए निरन्तर प्रयत्न इनके चरित्र का स्वाभाविक गुण है। 1961 में यूनिवर्सिटी ऑफ पूना से एम.बी.बी.एस. की डिग्री प्राप्त कर उन्होंने भारत व विश्व के शैक्षणिक उपलब्धियों के कई कीर्तिमान स्थापित किये। 1988 में यूनिवर्सिटी ऑफ पूना ने उनके शोध-प्रबंध 'रिहेबीलीटेसन ऑफ ऑरथोपेडीक्ली हेन्डीकेप्ड चिलडूनस इन रुरल इण्डिया' पर उन्हें पी-एच.डी. की डिग्री देकर सम्मानित किया। डॉ. संचेती कई शैक्षणिक, स्वास्थ्य सम्बन्धी व परोपकारी संस्थाओं से सक्रिय रूप से जुड़े हैं। संचेती इन्स्टीट्यूट फॉर ऑरथोपेडिक्स एण्ड रिहेबीलीटेशन, पुणे के आप जनक हैं। घुटने के ट्रान्सप्लेंट की आपकी तकलीक काफी कारगर सिद्ध हई है। जिससे न केवल भारत बल्कि विदेशों में प्रचलन बढ़ा है। देश-विदेश के कई चिकित्सालयों को आपकी सेवाएँ उपलब्ध रही हैं तथा नये आर्थोपेडिक सर्जनों के लिए आप प्रेरणा श्रोत रहे हैं। आपकी सेवाओं के सम्मान स्वरूप भारत सरकार ने आपको ‘पद्मश्री' उपाधि से अलंकृत किया।

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