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जैन-विभूतियाँ
और धर्म की सेवा के साथ आपने बीकानेर नगर और राज्य की भी उल्लेखनीय सेवाएँ कीं । लगभग एक दशक तक बीकानेर म्युनिसिपल बोर्ड के कमिश्नर रहने के अनन्तर सन् 1926 में आप सर्वप्रथम जनता की ओर से सर्वसम्मति से बोर्ड के वाइस प्रेसिडेन्ट चुने गये ।
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सन् 1931 में बीकानेर राज्य सरकार ने आपको ऑनरेरी मजिस्ट्रेट निर्युक्त किया। आप लगभग सवा दो वर्ष तक बेंच ऑफ आनरेरी मजिस्ट्रेट्स (Bench of Honorary Magistrates) में कार्य करते रहे। उल्लेखनीय है कि आपके फैसले किये हुए मामलों की प्रायः अपीलें ही नहीं हुई। इससे आपकी नीर-क्षीर विवेकिनी न्यायबुद्धि स्वतः प्रमाणित होती है। सन् 1938 तक आप म्युनिसिपल बोर्ड की ओर से बीकानेर लेजिस्लेटिव एसेम्बली के सदस्य चुने गये। आपने निःस्वार्थ भाव से जनता की सेवा की।
सन् 1930 में सेठिया जी को पुनः औद्योगिक क्षेत्र में प्रवेश करना पड़ा। बीकानेर में बिजली की शक्ति से चलने वाला ऊन की गाँठें बाँधने का एक प्रेस योग्य टैक्नीशियनों के अभाव में बन्द पड़ा था। आपने इसे खरीदकर बीकानेर में ऊन व्यवसाय का सूत्रपात किया । जहाँ कच्चा माल सीधा विलायत निर्यात होता था अब वह बीकानेर में ही प्रोसेस होने लगा। सन् 1934 में आपने वूलन फैक्टरी स्थापित की और यहां बना माल अमेरिका और लीवरपूल जाने लगा ।
बीकानेर के शासक महाराजा श्री गंगासिंहजी ने आपको विशिष्ट सेवाओं, स्वामिभक्ति, जन-कल्याणक कार्यों हेतु सम्मानित किया । दिनांक 6 अक्टूबर, 1927 को उन्हें हस्ताक्षरित मुंहर अंकित कर 'खास रुक्के' का सम्मान बख्शा गया। 30 सितम्बर, 1941 को महाराजा की तरफ से उन्हें कैफियत का सम्मान व छडी / चपरास इनायत हुए ।
नगरों की सामाजिक संस्थाओं बीकानेर, ब्यावर, कलकत्ता आदि द्वारा उन्हें धर्म भूषण, समाज रत्न, समाज भूषण आदि उपाधियों से विभूषित और अभिनन्दित किया गया। आप लोकैषणा से दूर सादगीपूर्ण जीवन में विश्वास करते हुए स्वयं को समाज का सेवक मानते रहे ।