Book Title: Bisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Author(s): Mangilal Bhutodiya
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 437
________________ 411 जैन-विभूतियाँ 107. श्री वल्लभराज कुम्भट (1922-2002) जन्म : जोधपुर, 1922 पिताश्री : बिशनराज कुम्भट दिवंगति : जोधपुर, 2002 जोधपुर राज्य के गाँव दईकड़ा से केदारदास जी कुम्भट के पुत्र माईदासजी जी जोधपुर आये। माईदास के वंशज प्रेमराजजी के बड़े पुत्र बिसनराज थे। श्री प्रेमराज का जवाहरात का व्यापार था। पूरा परिवार सरल, सुहृदय, ईमानदार तथा धार्मिक प्रवृत्ति का था। श्री प्रेमराज की व्यवहर कुशलता, लगन और ईमानदारी के कारण जोधपुर राज्य परिवार से इन्हें 'पालकी सिरोपाव' से सम्मानित किया गया। यह एक ऐसा राजकीय सम्मान था, जिसमें परिवार में लड़कों के विवाह पर सूचित करने पर राजकीय पालकी भेजी जाती थी, विवाह के पश्चात् वर-वधू को पालकी में बैठकर वर के घर लाया जाता था। श्री बिसनराज धर्मनिष्ठ व्यक्ति थे। श्री बिसनराज के सबसे छोटे पुत्र बल्लभ राज का जन्म 20 जुलाई, 1922 को हुआ। बल्लभराज प्रारम्भ से मेधावी थे। उन्होंने सन् 1938 में दसवीं परीक्षा उत्तीर्ण की। अपनी मेहनत एवं लग्नशीलता से 1940 में कॉमर्स में इन्टर की परीक्षा पास की। वल्लभराज ने उच्च अध्ययन के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। जहाँ से 1942 में बी.कॉम., 1944 में एम.कॉम. तथा 1945 में एल.एल.बी. की परिक्षाएँ उत्तीर्ण कीं। सन् 1945 में अध्ययन पूरा करने के पश्चात् जोधपुर में जागीर सेटलमेन्ट विभाग, उत्तरी रेलवे तथा राजकीय जसवन्त महाविद्यालय के रिक्त स्थानों का विज्ञापन निकला। आपने तीनों जगह अपने आवेदन-पत्र

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