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जैन-विभूतियाँ 106. श्री कंवरलाल सुराणा (1928-1996)
जन्म
: 1928
दिवंगति
: आगरा, 1996
सुराणा वंश ओसवाल जाति का गौरवशाली वंश है। जैन धर्म के अभ्युदय एवं प्रभावना में सुराणा श्रेष्ठियों का महत्त्पूर्ण योगदान रहा है। इस वंश की उत्पत्ति सिद्धपुर पाटण के महाराज सिद्धराज जयसिंह के रक्षक जगदेव पंवार के संवत् 1205 में जैनाचार्य हेमचन्द्र सूरि के प्रबोधन से जैन धर्म अंगीकार कर लेने से हुई।
__ आगरा के श्री कंवरलालजी सुराणा ने इस शदी में अपने अध्यवसाय से बहुत नाम कमाया। उनका जन्म सन् 1928 में हुआ। सामान्य शिक्षा पाने पर भी उनके तरुण मन ने अनेक सपने संजोये थे। वे स्थानीय इम्पीरियल बैंक के कैशियर नियुक्त हुए। कालांतर में स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया में केशियर रहे एवं अपनी लगन व ईमानदरी के बल पर पदोन्नति पाकर अनेक वर्षों तक हेड केशियर के पद पर कार्यरत रहे।
वे सदा कुछ नया करने की सोचा करते थे। अपने पुत्रों श्री अशोक कुमार एवं दिलीप कुमार के लिए वे समृद्ध व्यापार विरासत में छोड़ जाना चाहते थे। उनके सुयोग्य पुत्र अशोक कुमार के मन में भी ऐसा ही एक सपना आकार ले रहा था। कंवरलालजी ने पुत्रों के उज्ज्वल भविष्य की कामना से बैंक के हेड केशियर के पद से त्याग-पत्र दे दिया एवं सन् 1972 में आगरा में 'ओसवाल इम्पोरियम' की नींव रखी। अपनी स्वस्थ छवि, ईमानदारी एवं परिश्रम से इम्पोरियम ने जल्दी ही अपनी साख जमा ली। यह इम्पोरियम अब . भारत का नम्बर एक इम्पोरियम माना जाता है।
___ उन्हें सरकार द्वारा इस क्षेत्र के सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित किया गया। प्रशंसा-पुरस्कार तो हर साल मिलते रहे हैं। ओसवाल इम्पोरियम से