Book Title: Bisvi Shatabdi ki Jain Vibhutiya
Author(s): Mangilal Bhutodiya
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 406
________________ जैन- विभूतियाँ 1985 में उनके जीवन के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष में दिल्ली में आयोजित समारोह में उनके परिवारजनों और उनके हितेच्छुओं ने उनकी दीर्घायु की कामना की। उनके जीवन का संक्षिप्त परिचय संकलन उनकी 'स्मारिका' में प्रकाशित किया गया । दिल्ली में आयोजित समारोह में उन्होंने एक लाख रुपये की राशि 'पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान' में 'सन्मति साहित्य श्रृंखला' के लिए अर्पण की । 380 1993 में शिकागो में हुई 'विश्व धार्मिक संसद' में उन्होंने जैन प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया एवं 'विश्वशांति एवं जैन सिद्धांत' पर जो उत्कृष्ट भाषण दिया उसकी सर्वत्र सराहना की गई। 82 वर्ष की उम्र में भी उनकी वाणी के जोश एवं शास्त्रों के श्लोकों की स्मृति से वहाँ के धर्मानुयायी आश्चर्यचकित हुए थे। 90 वर्ष की उम्र में भी उनके मन में जैन धर्म के 2600वें जन्मकल्याणक के बारे में चिंता थी । अपने अंतिम समय तक वे सक्रिय रहे। एक आदर्श जीवन कैसे जिया जाये, उसके वे अनुकरणीय उदाहरण थे। जो भी व्यक्ति उनके सम्पर्क में आया, वह उनकी बुद्धिमत्ता, पाण्डित्य से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा। ऐसे में भी उनका सरल व सादा जीवन बहुतों के लिए प्रेरणास्रोत रहा है और रहेगा । जैन-धर्म के मर्मज्ञ श्री शांतिलाल वनमाठी शेठ का 11 जुलाई 2000 को शाम 7 बजे स्वर्गवास हो गया। " अब अंतिम समय में अपने एक-एक पल का सदुपयोग कर लूँ और अंत तक महावीर स्मरण करते-करते संस्थारा करके प्राण त्याग दूँ-यही उन्होंने मन-ही-मन निश्चय कर लिया था । मानो उन्हें अपने अंतिम समय का साक्षात्कार हो गया हो - दोपहर दो बजे स्नान कर, नए कपड़े पहनकर 'मृत्यु- महोत्सव' का स्मरण और पठन शुरु कर दिया था। सायं 7 बजे, सूर्यास्त समय ऐसी महान आत्मा ने हमारे बीच से विदा ली। उनके द्वारा किये हुए सामाजिक कार्य और देश-विदेश में की हुई जैन धर्म की प्रसिद्धि एक यादगार है । उनके जैसा विशाल हृदयी शास्त्राध्यायी और स्पष्ट वक्ता पाना मुश्किल है। 1 - -

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