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जैन-विभूतियाँ लिए सुशीला जी सर्वदा सेवारत रही। सन् 1968 में उन्होंने 'पारिवारिकी' की स्थापना की जहाँ 2 से 16 वर्ष की उम्र के दरिद्र परिवारों के सैकड़ों बच्चों के समुचित विकास की अभूतपूर्व व्यवस्था है।
पश्चिम बंगाल की सरकार ने उन्हें प्रथम महिला जस्टिस ऑफ पीस (1963-73) मनोनीत कर सम्मानित किया। सन् 1985 में कोलकाता के 'लेडीज स्टडी ग्रुप' द्वारा वे सर्वप्रमुख सामाजिक कार्यकर्ती एवं सन् 1987 में बम्बई के 'राजस्थान वेलफेयर एसोशियेसन' द्वारा 'सर्व प्रमुख महिला कार्यकर्ची' चुनी गई। वे महात्मा गाँधी द्वारा स्थापित 'कस्तूरबा गाँधी स्मारक निधि' की ट्रस्टी नियुक्त हुई। समाज सेवा के अतिरिक्त अनेक शैक्षणिक एवं कला संस्थानों को उनका निदर्शन उपलब्ध था। अनामिका, संगीत कला मन्दिर, अनामिक कला संगम, शिक्षायतन, यूनिवर्सिटी महिला एसोशियेसन, महिला समन्व्य समिति, गाँधी स्मारक निधि, मारवाड़ी बालिका विद्यालय आदि अनेक संस्थाएँ सुशीलाजी की सेवाओं से लाभान्वित हुई हैं।
सुशीलाजी सन् 1961 से 66 तक लगातार काँग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की डेलीगेट रहीं। वे बंगाल महिला सेवा समिति एवं कलकत्ता. महिला वेलफेयर संस्थान की मानद मंत्रिणी (1958-72) रही। इंडियन रेड क्रास सोसाईटी एवं ऑल इंडिया रेडियो कलकत्ता के परामर्शक मण्डल से भी जुड़ी रही। मारवाड़ी बालिका विद्यालय की लगातार 14 वर्ष मंत्री रहकर वे उसकी अध्यक्ष चुनी गई। उन्होंने अपनी सामाजिक गतिविधियों के सन्दर्भ में अमरीका, जापान, यूरोप एवं थाईलैंड की यात्राएँ की। सन् 1984 में सिंघीजी की अकस्मात् मृत्यु के बाद भी वे सार्वजनिक क्षेत्र से जुड़ी रही। सिंघीजी के सपनों की वे जीती जागती तस्वीर थी। ___ सिंघीजी एवं सुशीलाजी का परिवार अन्तर्जातीय सौहार्द्र का जीताजागता उदाहरण है। सिंघीजी के प्रथम पुत्र श्रीकांत ने बंगाली घराने की तरुणी तापती बसु से विवाह किया। वे नई दिल्ली रहते हैं एवं चमड़े के व्यवसाय से जुड़े हैं। सुशीलाजी की बड़ी पुत्री सुषमा ने कॉलेज के सहपाठी बंगाली युवक उज्ज्वल गुप्ता से विवाह किया। वे भी अब