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सेख॥
२ इतलै धणी रै वाळौ हुवौ, दूखणी आयौ देख।
किणहिक ओषध दे करी, सांतरौ कीयौ ३ ताजौ हुऔ तिण अवसरै खेत काट्यौ धर खंत।
साहज दैण वाळा नैं सही, लागौ पाप एकंत।। ४ कहै पाप हुवै खेत काटीयां, तो काटण वाळा नैं सोय।
साहज देईनै साजौ कीयौ, जिण नै पिण पाप जोय॥ . ५ तिमहिज और पापी तणे, साता कीधी विसेख।
तिण माहै धर्म किहां थकी, दिल माहै देख। ६ केयक भेषधारी कहै- धन दीधां धर्म।
वले कहै-ममता ऊतरी, भोळां रै पाडै भर्म।। ७ पूज भीक्खू तिण ऊपरै, निरमळ मेल्या न्याय।
भर्म लोकां रौ भांजवा, स्वामी महा सुखदाय॥ ८ किणही मनुष्य रै खेती हुँती, वीस वीगा विचार।
दस वीगा ब्राह्मण नैं दीया, धर्म अर्थे ९ वीस हळां री खेती विषै, दस हळ खेती दीध।
ए पिण ममता ऊतरी, तिण रै लेखै प्रसीध॥ १० कह्यौ परिग्रह नव प्रकार नौं, दौपद चौपद देख।
पांच दास्यां दीधी पर भणी, पंच गायां संपेख॥ ११ ए पिण ममता ऊतरी, तिण रै लेखै तहतीक।
धर्म कहै रुपीया दीयां, तौ इण मैं पण धर्म ठीक।। १२ दास्यां खेती गायां दीयां, पुन रो अंस म पेख।
इमहिज रुपीया आपीया, धर्म पुन्य म देख॥ १३ पाप अठारां मैं पंचमौ, परिग्रह महा विकराल।
सेव्यां सेवायां पाप छै, भगवती मैं संभाळ।।
धार।
१. नारू नाम का रोग और उसका कीड़ा। २. कैकेइक (क)।
३. भि. दृ. २२१॥ ४. भगवई. १/३८४
भिक्खु जश रसायण