Book Title: Bhikkhu Jash Rasayan
Author(s): Jayacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 363
________________ परिशिष्ट-२ पारिभाषिक शब्द अजिन जिनोपम अज्जा अट्ठम भक्त अणगार अणसण अणुव्रत अतिसय अधिकरण अध्यवसाय अन्यतीर्थी अभिग्रह अरिहंत आचार्य, जो जिन नहीं हैं पर उनकी उपमा धारण करने वाले। (आर्या) साध्वी तीन दिन का उपवास मुनि (गृह त्यागी) अल्पकालिक अथवा यावज्जीवन भोजन का परिहार। गृहस्थ द्वारा स्वीकृत छोटे-छोटे संकल्प। स्थूल रूप से हिंसादिक का परित्याग विशेषता शस्त्र, साधन। चेतना का सूक्ष्मतम स्तर। दूसरे सम्प्रदाय के साधु। किसी विशेष उद्देश्य से विशेष संकल्प करना। चार घनघाती कर्मों (ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय, अन्तराय) का क्षय करने वाला। . इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना केवल आत्मा के द्वारा होने वाला मूर्त द्रव्यों का सावधिक ज्ञान। आचार्य की आठ सम्पदाएं १ आचार संपदा २ श्रुत संपदा ३ शरीर संपदा ४ वचन संपदा ५ वाचना संपदा ६ मति संपदा ७ प्रयोग संपदा ८ संग्रह परिज्ञा दुःख के रूप में उदय आने वाला वेदनीय कर्म। नमक, मिर्च, घी, तेल आदि से रहित कोई एक अन्न, एक ही वार खाकर किया जाने वाला तप। अवधिज्ञान अष्ट संपदा असाता वेदनी आंबल (आयम्बिल) ३१६ भिक्खु जश रसायण

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