Book Title: Bhikkhu Jash Rasayan
Author(s): Jayacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
६ भाद्रवा सुकल नवमी तणे दिन, पूज कहै - आहार नों त्याग लेऊ।
सतजुगी कहै-मुज हाथ नो चाखियै, चरम आहार थोड़ो आंण देऊा कर. ७ अलप सो आहार आंण्यो सांमी खेतसी, चाख के ततखण त्याग कीधौ।
एतो मन राखीयौ सुवनीत सिष तणो, पिण इच्छ्यां सूं आहार त्यां नाह लीधौ।। कर. ८ दसमी तणे दिन परम भगता सिष, पूजजी सूं वली एम भाखै।
चाळीस चावळ दस मोठरे आसरे, वीणती मान कै तेह चाखै।। कर. ९ इग्यारस तो पूज आहार त्यागे दीयौ, अमल पांणी रो आगार राख्यौ।
हिवै मुज नै आहार लेतौ मत जांणज्यौ, वचन अमोलख एक भाख्यौ। कर. १० सनमुख पधारीया तावड़ौआवीयां, बारस बेलो थिर कर ठायो।
सकत इसड़ी रही आहार कीयां बिना, एह इचरज इधक आयो। कर. ११ जीवण आछै अरज कीधी हाट री, तो ही पूज पकी हाट आय बैठा।
'सेन सिषां कियौ विसरांम त्यां लियौ, सांम तो मन माहै इधक सैंठा।। कर. १२ सुखे सूता देख पूज परम गुर, रिष रायचंद आय एम बोले।
किरपा तो कीजियै दरसण दीजीयै, तांम तो पूजजी नैण खोल।। कर. १३ पूंज सूं वीनवै प्राकम हीणा पड्या', ब्रहचारी विनय सूं ए बोलै।
केसरी नी परे वेण हिवडै धरै, तांम ते आपरो 'तेज'८ तोलै।।
१. शयन (बिछौना)। २. शारीरिक शक्ति क्षीण हो रही है।
३. मुनि रायचंदजी। ४. पराक्रम।
२९६
भिक्खु जश रसायण

Page Navigation
1 ... 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378