Book Title: Bhikkhu Jash Rasayan
Author(s): Jayacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 348
________________ दूहा १ तियाळीस वरसां लगे, कांयक जाझेरो जांण। संजम पाल्यौ सांमजी, समता रस घट आंण।। २ दिन-दिन इधका दीपीया, तेज प्रताप पिछांण। जिण मारग जमायौ जुगत सूं, अखंड वरताई आंण। ३ आंख्यां आद इंद्रयां तणो, रह्योज रूड़ी तेज। सरीर निरोगौ निरमळौ, तिण दीठां उपजै हेज।। ४ किया चोमासा चूंप सूं, चतुर नै चाळीस। इधक आउखौ आछौ हुओ, ज्यूं दीप्या जगदीस॥ ५ किहां-किहां चोमासा किया, किहां-किहां किया उपगार। नाम लेइ निरणौ कहूं, ते सुणजो विसतार।। . ढाळ : १२ (जीवा! मोह अनुकंपा न आणीयै ) १ छ चोमासा किया केलवै, सतरे इकवीसे जांण जी। पचीसे अड़तीसे गुणचास मैं, लीज्यो अठावनो पिछांण जी॥ सुणज्यो चोमासा सांमी तणा॥ २ तिण ठांमे उपगार हुऔ घणौ, मोखमसींगजी ठाकुर जांण जी। दरसण करता दयाल रा, वले सुणता आय वखांण जी।। सुण. ३ सात चोमासा सरियारी कीया, उगणी बावीसे गुणतीसे जोय जी। गुणताळे वयाळे एकावने, साठे चरम किल्याणज होय जी।।सुण. ४ सात किया पाली में पूज जी, तेइसे तेतीसे जांण जी। चाळीसे चमाळीसे बावने, पचावने गुणसठे बखांण जी। सुण. ५ पांच चोमासा किया खैरवे, छाइसे बतीसे विचार जी। इकताळीसे छियाळीसे चोपने, तठे कीयौ घणौ उपगार जी। सुण. ६ बगड़ी मैं पूज विध सूं किया, तीन चोमासा सरीकार जी। सतावीसे नै तीसे समे, तीजो बतीसे लीजो विचार जी॥ सुण. - ७ नाथदुवारा मैं नीका किया, तीन चोमासा तहतीक जी। तयाळीसे पचासे छपनै, त्यांरी रूड़ी राखज्यो ठीक।। सुण. भिक्खु-चरित : ढा. १२ ३०१

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