Book Title: Bhikkhu Jash Rasayan
Author(s): Jayacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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१
दूहा
परम
वचन श्री पूज रा, चरम उपदेश तो आछौ दियौ, सांभळता
चित
२ सुध गति जाणौ जेह नै, जिसा गंगा नीर ज्यूं ३ परम भगता सिख कांइ असाता
ठेट
आपरै, सांम
४ श्री वीर मुगत
निरमळौ, आद दे,
इण दुषम ओ पांच मै, वले उपदेश दीधौ किण विधे, भव जीवां तुमे सांभळो, चित
किण
विराजतां, सोहलै
तिम
१. ऊनायत (कमी ) ।
भिक्खु चरित : ढा. ७
अरिहंत वचन आराधजो रे, ६ रायचंद ब्रह्मचारी नै इम कहै रे, मोह म आंणै माहरो रे,
वचन
इज
र
सुधी
कहै - नहीं
पोहर
हीज
विध
नैं
ढाळ : ७
( चतुर नर बात विचारो एह )
र
एकण
पूछ्यौ
रे
कियौ
१ भारमलजी आद साधां भणी रे, श्री पूज कहै चरम सीखावण माहरी रे, सांभळजो भविक रे, भीक्खू दिया उपदेश ।।
संका न
हिवड़े
हरष
२ म्है तो जाता दीसां परभवे रे, मरण रो भय म्हारे नहीं रे, ३ म्है चरित दीयो घणां जीव भणी रे, श्रावक-श्रावका किया घणां रे, ४ म्है जोड़ां कीधी जुगत सूं रे, ' उणारत १ रहीं नहीं रे,
५ थे पिण रहिजो निरमळा रे,
1
चिमतकार |
सुखकार ॥
भीक्खू
बोल्या
आण
परणांम।
ठांम॥
दीसै
अथाय ॥
वारूंवार ।
लिगार ॥
बखांण ।
जांण ॥
वांण ।
ठिकांण ॥
छै बोलाय ।
सुखदाय ॥
कांय ।
भविक.
समकत
पमाई
रूड़ी
रीत ।
एकंत तारण नी नीत ॥ भविक.
नर-नार ।
भविक.
माय।
समझाया म्हारा मन मझार । मोह म कीज्यो मन ज्यूं मोसूं वेगा मिलोला आय।। भविक. तू छै बालक बुधवांन राखजै रूड़ो ध्यांन ॥ भविक.
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