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भूमिका।
-:-.-:सत्स्वादुमोदकमदन्नपि भक्तहस्ताद्
दूर्वादलं कृषति जेमनहेतवे यः । तं ज्ञप्ति वैभववशाद्वियुधादि पूज्यं
वन्दे महागणपतिं निजवुद्धिवृद्ध्यै ॥ १ ॥ प्रियपाठकगण,
अपनी भाषा की उन्नतिही सव प्रकारके उन्नतियों का मूलहै । अत एव देशोन्नति साधन के लिये, साक्षर लोगों का यह कर्तव्य है कि पहले अपने यहां के प्राचीन ज्ञान विज्ञानों से भाषा के भण्डार को पुष्ट करें तत्पश्चात् नवीन विज्ञानों के समावेश. से समलंकृत करें ।। __ साधारण कृषक से लेकर बड़े २ नरपति तक सभी इस वात को जानते हैं कि कार्य के सफलता में काल ( समय ) एक असा. धारणकारण है । समय पर किया हुआ कार्य थोड़े से प्रयत्न में ही ऐसी सफलता प्राप्त करता है, कि वैसी सफलता असमय में कोटि यत्न करने पर भी असंभव है समय के प्रतिकूल होने से किसी की कुछ नही चलती और समय के अनुकूल होने से सिद्धि करतलगतसी रहती है।
प्राचीन काल में समय पर कार्य करने का इतना ध्यान दिया गया, कि इसका एक पृथक् विज्ञान (Science ) ही व. नगया । समय विज्ञान ज्योतिष मुहूर्त विज्ञानादि उसी के नाम हैं । इस विज्ञानकी भी दो शाखाएं हुई (१) गणित और (२) फलित, फलित में इस विषय का वर्णन है कि किस मुहूर्त में कौनसा कार्य करना चाहिये और गणीत में समय का निर्धारण किया जाता है।
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