Book Title: Bharat ke Digambar Jain Tirth Part 3 Author(s): Balbhadra Jain Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha View full book textPage 6
________________ प्रस्तुति 'भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ' ग्रन्थमालाका यह तीसरा भाग है जो प्रथम दो भागोंकी ही भाँति भगवान् महावीरके २५००वें निर्वाण महोत्सव वर्षकी पुण्य स्मृतिमें समर्पित है। ग्रन्थमालाको प्रकाशन योजनाके पूर्ण होने में इसके अभी दो या तीन भाग और शेष रह जाते हैं। सर्वेक्षण, सामग्री-संकलन, लेखन एवं सम्पादन कार्य चल रहा है । प्रयास यही है कि शेष सभी भाग भी आपके हाथोंमें यथाशीघ्र पहुँचें। जैसा कि अब तक प्रकाशित इन तीन भागोंके अवलोकनसे स्पष्ट होगा, तीर्थोके परिचयात्मक वर्णनमें पौराणिक, ऐतिहासिक और स्थापत्य एवं कलापरक सामग्रीका संयोजन बहुत ही परिश्रम और सूझ-बूझसे किया गया है । ग्रन्थ-लेखक पं. बलभद्रजीको इस कार्यमें व्यापक अनुभव है, लगन तो है ही। सामग्रीको सर्वांगीण बनाने की दिशामें जो भी सम्भव था, कमेटीके साधन, ज्ञानपीठका निर्देशन एवं श्री साहू शान्तिप्रसादजीका मार्गदर्शन और प्रेरणा पण्डितजीको उपलब्ध रही है। भारतीय ज्ञानपीठकी ओरसे सामग्रीका न केवल सम्पादकीय नियमन हआ है अपितु सारे मानचित्रोंका निर्माण प्रथम बार कराया गया है। तीर्थक्षेत्र कमेटीने यात्राओंके नियोजन, सामग्री-संकलन, सम्पादन, लेखन तथा फोटोग्राफ्स प्राप्त कराने, मानचित्र बनवाने और ग्रन्थमालाको प्रकाशित करने में पर्याप्त धन व्यय किया है। इस सारी सामग्रीपर और इसके संयोजनप्रकाशनपर भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटीका सम्पूर्ण अधिकार है। सामग्री संकलन, लेखन-कार्य और मद्रण-प्रकाशनपर यद्यपि अधिक धनराशि व्यय हुई है फिर भी तीर्थक्षेत्र कमेटीने इस ग्रन्थमालाको सर्व-सुलभ बनानेकी दृष्टिसे केवल लागत मूल्यके आधारपर दाम रखनेका निर्णय किया है। भारतीय ज्ञानपीठका व्यवस्था सम्बन्धी जो व्यय हुआ है, और जो साधन-सुविधाएं इस कार्यके लिए उपलब्ध की गयी है, उनका समावेश इस व्यय-राशिमें नहीं किया गया है। भाग १ और २ की तरह इस भागकी भी अलग-अलग जनपद सम्बन्धी पुस्तिकाएँ छपायी गयी हैं ताकि सम्बन्धित तीर्थक्षेत्र, चाहें तो, उतने ही अंशकी प्रतियां भी प्राप्त कर सकें। तीर्थक्षेत्र कमेटी तथा भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा नियोजित की गयी पं. बलभद्रजीकी यात्राओंके अवसरपर तीर्थों के मन्त्रियों और प्रबन्धकोंसे जो लेखन-सामग्री या सूचनाएं उपलब्ध हुई तथा जो सहयोग प्राप्त हुआ उसके लिए हम अपना हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं । हमारा विश्वास है कि यह प्रकाशन पर्याप्त उपयोगी, सुन्दर, ज्ञानवर्धक और तीर्थ-वन्दनाके लिए प्रेरणादायक माना जायेगा। पूरा प्रयत्न करनेपर भी त्रुटियाँ रह जाना सम्भव है। अतः इस ग्रन्थके सम्बन्धमें सुझावों और संशोधनोंका हम स्वागत करेंगे। लक्ष्मीचन्द्र जैन मन्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली-११०००१ दिनांक : २७ जून, १९७६ जयन्तीलाल एल. परिख महामन्त्री भा. दि. जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी, बम्बईPage Navigation
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