Book Title: Bhagvati Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4G R उद्देशक १० व्याख्या प्रज्ञप्तिः ४ शतके उरेशः१० ॥३२९॥ ॥३२९॥ RCRACCARRORA (दशमा उद्देशकमां पण लेश्या संबंधी हकीकत कही के) से नृणं भंते ! कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प तारुवत्ताए तावण्णत्ताए एवं चउत्थो उद्देसओ पन्नवणाए चेव लेस्मापदे नेयम्वो जाव-परिणामवण्णरसगंधसुद्धअपसत्थसंकिलिण्हा । गतिपरिणामपदेसोगाहवग्गणाठाणमप्पबहुं ॥ ३३ ॥ सेवं भंते ! रत्ति ॥ (सू० १७४ ) चउत्थसए दसमो उद्देसो संमत्तो॥४-१०॥ चउत्थं सयं संमत्तं ॥ ४॥ [40] हे भगवन् ! कृष्णलेश्या नीललेश्यानो संयोग पामी ते रूपे अने ते वर्णे परिणमे ? [उ.] हे गौतम ! प्रज्ञापनासूत्रमा कहेलो लेश्यापदनो चोथो उद्देशक अहीं कहेवो अने ते यावत्-'परिणाम' इत्यादि द्वार गाथा सुधी कहेवो. परिणाम, वर्ग. रस, गंध, शुद्ध, अप्रशस्त, संक्लिट, उष्ण, गति, परिगाम, प्रदेश, अवगाहना, वर्गणा, स्थान, अने अल्पबहुत्वः ए बधुं लेश्याओ संबंधे कहे. हे भगवन् ! ने ए प्रमाणे हे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे के एम कही यावत् विहरे छे. ।। १७४ ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना चोथा शतकमां दशमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. For Private and Personal Use Only

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