Book Title: Bhagvati Sutram Part 02 Author(s): Sudharmaswami, Publisher: Hiralal Hansraj View full book textPage 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ शतके | उडेशः१-८ ॥३२॥ है ब्वया ततियसए तहा ईसाणस्सबि जाव अच्चणिया संमत्ता । चउण्हवि लोगपालाणं विमाणे २ उद्देसओ, चउसु व्याख्या विमाणेसु चत्तारि उद्देसा अपरिसेसा, नवरं ठितीए नाणत्तं-'आदिदुय तिभागूणा पलिया १ धणयस्स हॉति प्रज्ञप्तिः | दो चेव । दो सतिभागा वरुणे पलियमहावच्चदेवाणं ॥ ३२ ॥ (सू० १७१) चउत्थे सए पढमबिइयतइयचउत्था | ऊद्देसा समत्ता ॥४-४॥ ॥३२७॥ [उ०] हे गौतम ! जंबूद्वीप नामना द्वीपमां मंदर पर्वतनी उत्तरे आ रत्नप्रभा पृथिवी यावत्-ईशान नामे कल्प कयो रे. १ तेमां यावत्-पांच अवतंसको कद्या छे. ते आ प्रमाणे:-अंकावतंसक, स्फटिकावतंसक, रत्नावतंसक अने जातरूपावतंसक, ए चारे | अवतंसकोनी बच्चे ईशानावतंसक छे. ते ईशानावतंसक नामना महाबिमाननी पूर्वे तिरछु असंख्येय हजार योजन मूक्या पछी-अहीं देवेंद्र, देवराज ईशानना सोम महाराजानुं सुमन नामनुं महाविमान कांहे. तेनो आयाम अने निष्कंभ साडाबारलाख योजन छे, इत्यादि बधी वक्तव्यता त्रीजा शतकमां कहेली शक्रनी वक्तव्यना पेठे अहीं ईशानना संबंधां पण कहेवी. अने यावत्-आखी अर्चनिका मुधी कहेवी. ए रीते चारे लोकपालोना प्रत्येक विमाननी हकीकत पूरी थाय त्यां एक उद्देशक जाणवो. चारे विमाननी हकीकत पूरी:थतां पूरा चारे उद्देशक समजवा. विशेष ए के, स्थिति आवरदामां भेद समजबो. आदिना बेनो-सोमनी अने यमनी आवरदा त्रण भाग उणा पल्योपम जेटली छे, वैश्रमणनी आवरदा त्रण भाग सहित वे पल्योपमनी छे. तथा अपायरूप देवोनी आवरदा एक पल्योपमनी छे. ॥ १७१ ॥ रायहाणिसुवि चत्तारि उद्देसा भाणियब्वा जाव एवमहिड्डीए जाव वरुणे महाराया ॥ (म० १७२ ) ॥ For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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