Book Title: Bhagvati Sutram Part 02
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ शतके चउत्थे सए पंचमछट्ठसत्तमट्ठमा उद्देसा समत्ता ॥४-८॥ ध्याख्या [प्र.उ०] राजधानीओना संबंधमां पण एक एक राजधानी संबंधी हकीकत पूरी थतां एक एक उद्देशक पूरो समजबो. अने प्रज्ञप्ति दए रीते राजधानीओना संबंधमां चार उद्देशको पूरा समजवा. यावत्-ए रीते वरुण महाराजा मोटी ऋद्धिवाळो छे. ॥ १७२ ॥ ॥३२८॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना १ थी ८ उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. । उद्देशः९ ॥३२८॥ RRRRRRRRRRIA शतक ४ ( उद्देशक ९) ( नवमा उद्देशकमां नारको संबंधी हकीकत जणावी छे.) नेरइए ण भंते ! नेरतिएसु उववज्जइ ? अनेरइए नेरइएसु उववज्जइ ? पन्नवणाए लेस्सापए ततिओ उद्देसओ भाणियब्वो जाव नाणाई (सू० १७३) चउत्थसए नवमो उद्देसो समत्तो॥४-९॥ ___ [प्र०] हे भगवन् ! नरयिक होय ते, नैरयिकोमा उत्पन्न थाय के अनैरयिक होय दे, नैरयिकोमा उत्पन्न थाय ? [उ०] हे गौतम ! प्रज्ञापनासूत्रमा कहेलो लेश्यापदनो त्रीजो उद्देसो अहीं कहेवो अने ते यावत् ज्ञानीनी हकीकत सुधी कहेवो. ॥ १७३ ॥ भगवत् सुधर्मखमीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना चोथा शतकमा नवमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. For Private and Personal Use Only

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