Book Title: Bhagvati Sutram Part 01
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आ प्राक्कथन. गतिना जमानामां ज्ञाननी अनिवार्य आवश्यकता के अने ए ज्ञानप्राप्ति सुलभ क्यारे बने के ज्यारे अध्यापकोनी जोगवाइ साथै अनेक ग्रंथोनुं प्रकाशन जुदा जुदा रूपमा वाचकवृंदने मळे त्यारे ते पोतानी ज्ञाननी वृषाने विं. चित् तृप्त करी शके छे, एटलुंज नहि परंतु ते ज्ञानना बळथी जगतमां अनेक अशक्य कार्यों करी आत्मकल्याणने साधवा साथै जगतनो आशीर्वाद प्राप्त करी शके थे. आवा हेतुथी खपरना श्रेयः माटे अमारा तरफथी सूत्रो, तथा चरितानुयोगो, सटीक तेमज भाषांतरवाळा लगभग अत्यार सुधीमां बसो ग्रंथो प्रसिद्ध यया के तेमज अन्य संस्थाओए पण ते कार्यपरत्वे वधारे लक्ष आपी अनेक ग्रंथो जुदा जुदा स्वरूपोमां मुद्रित करी जैनशासनना उद्धार माटे सारो प्रयास कर्यो छे अने करे थे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य महाराज आदिथी मेळवी शकाय एवा आपणा जैनशास्त्रमां मुख्य श्रीसुधर्मस्वामि आदि महापुरूषोप्रणीत आगम ग्रंथो छे जेने आपणे सूत्रो कहीए छीए. जेमां सिद्धांतोनुं स्पष्ट निरूपण कर्फ्यू छे अने जेना उपर विद्वान प्रातःस्मरणीय आचायोए टीकानी रचना रवी तेनुं स्पष्टीकरण करी आज आपणने माटे अखंड दीपक मूकी गया छे. ते दीपकना प्रकाशधी अनेक भव्यात्माओ स्वकल्याण करी शक्या छे अने करे छे. आवा आगमाना ग्रंथोनी आजथी साठ वर्ष पहेलां हस्तलिखित प्रतिओ क्वचित् कचित् भंडारमां मली शकती जेथी प्राचीनवाचकवृंद तेनो संपूर्ण लाभ लइ शकता पण वर्तमानमां बालकालथी मुद्रितथी देवातो वाचकवृंद ते लाभ लह शके नहि. आ मुश्केली रायबहादुर धनपतसिंहजी बाबुए अंग उपांग विगेरे मुद्रित करावी थोडे अंशे दूर करी. परंतु ते मुद्रणनी For Private and Personal Use Only

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