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श्रीभगवती सूत्र
ये अल्पकर्मी है । इसके विपरीत जो जीर बाद में उत्पन्न हुए है-हाल ही पैदा हुए हैं, उन्हें व त कर्म भोगने हैं, इसलिए वे बहुकर्मा हैं।
सगवान् का यह कथन भी अपेक्षा से ही समझना चाहिए । मान लीजिए, एक जीव दस हजार वर्ष की स्थिति बाँधकर हाल ही नरक में उत्पन्न हुआ। और दूसरा जीव कई सागर की स्थिति से, उससे बहुत पहले उत्पन्न हो चुका है । दस हजार की स्थिति वाला चाहे बाद में ही उत्पन्न हुआ है, फिर भी वह पूर्वोत्पन्न सागरोपम की स्थिति वाले नारकी को अपेक्षा लघुकर्मी ही होगा। और पहले उत्पन्न होने वाला, सागरोपम की स्थिति वाला, दस हजार वर्ष की स्थिति वाले की अपेक्षा बनुकर्मी होगा। अगर दो जीव समान स्थिति, बाँधकर नरक में गये हैं, तो उनमें से पहले उत्पन्न होने वाला खाधुकर्मी होगा और पञ्चात् उत्पन्न होने वाला यहुकर्मी होगा, क्योंकि पहले उत्पन्न: ए नारकी ने अपने अधिक कर्म भोग लिचे हैं और पश्चात् उत्पन्न होने वाले ने कम भोगे हैं।
का योग का जाना है पीर को प्रसन्न
यही वात वर्ण के विषय में है । शिसने स्थिति का कुछ भाष भोग लिया है. उसका वर्ण शुद्ध होता है और जो अभीअभी उत्पन्न हुआ है, उसले नहीं झोनम, इस कारण उसका अभी अशुद्ध होता है । अतएव जो जीवनरक में पहले उत्पन्न हो चुका है, उसका वर्ण शुद्ध है. जो बाद में उत्पन्न हुआ है उसका वर्ण, पूर्वोत्पन्न की अपेक्षा अशुख है।
. लेश्या के संबंध में भी यही बात है। लेश्या से यहाँ भाय लेश्या को ही ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि द्रव्य लेश्या