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मनुष्य वर्णन उत्तर-हे गौतम ! औधिक-सामान्य, सलेश्य और शुक्ल लेश्या वाले, इन तीनों का एक गम--पाठ कहना चाहिए । कृष्णलेश्या वालों और नील लेश्या वालों का एक:-समान पाठ कहना चाहिए, पर उनकी वेदना में इस प्रकार भेद है:-मायिमिथ्यादृष्टि-- उपपन्नक और अमायी सम्यग्दृष्टि--उपपन्नक कहने चाहिए । तथा कृष्ण लेश्या
और नील लेश्या में मनुष्यों को सरागसंयंत, वीतरागसंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्त संयत नहीं कहना चाहिए । तथा कापोतलेश्या में भी यहीं पाठ कहना चाहिए, मेद यह है कि कापोत लेश्या वाले नैरयिकों को औधिक दंडक के समान • कहना चाहिए । तेजो लेश्या और पद्म लेश्या वालों को
औधिक दंडक के ही समान कहना चाहिए विशेषता यह है कि मनुष्यों को सराग और वीतराग नहीं कहना चाहिए । गार्थी:
कर्म और आयुष्य उदीर्ण हों तो वेदते हैं । आहार, कर्म, वर्ण, लेश्या, वेदना, क्रिया और आयुष्य इन सब की समानता के संबंध में पहले कहे अनुसार ही समझना चाहिए।
व्याख्यान-अब तक जो वर्णन किया गया है, उसमें किसी खास अपेक्षा का विचार नहीं था । सामान्य रूप से चौवीस दंडकों के विषय में विचार किया गया है । अव लेश्या की अपेक्षा से चौवीस दंडकों का विचार किया जाता है ।