Book Title: Bhagavati Sutra par Vyakhyan
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam

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Page 332
________________ श्रीभगवती सूत्र [६ ] अनुभागबंध कपाय से होते हैं । अतएव अगर योग के परिरणाम को लेश्या माना जाय तो कहना होगा कि स्थितिबंध और अनुभागरंध कपाय से नहीं होता। इन दोनों पक्षों को ध्यान में रखते हुए यही कहा जा सकता है कि कयाय से अनुरंजित योग की प्रवृत्ति लेश्या कहलाती है और लेश्या तभी तक रहती है जब तक योग है। तेरहवें गुणस्थान में योग है इसलिए लेश्या है। बाद में योग नहीं है अतएव लेश्या भी नहीं है। आठवें गुणस्थान ले शुक्ल लेश्या होती है, वह फिर नहीं बदलती। आगे जब तक लेश्या रहेगी, शुक्ल ही रहेगी! प्राचार्य कहते हैं-जब नदी में पूर पाता है तब नदी. की रेत समतल रूप में जम जाती है और पृर हट जाने के बाद भी रेत पर जमी हुई तरंगें दिखाई देती हैं। यह सब नदी के प्रवाह से हुआ था । नदों का प्रवाह खत्म हो गया, पानी यह गया। लेकिन उसके निमित्त से बनी हुई लहरें जमी रह गई। इसी प्रकार योग के साथ कपाय का संबंध होने से लेश्या की रचना होती है। योग को लेश्या के रूप में परिणत करना कषाय का काम है। जव कपाय हल्की होती है तव लेश्या प्रशस्त होती है। इस प्रकार कपाय और योग से लेश्या बनी है। जैसे पानी वह जाने पर भी रेत में लहरें वनी रहती है उसी प्रकार कपाय के नष्ट होजाने पर भी योग के साथ लेश्या बनी रहती है। तदनन्तर जैसे वायु चलने से रेत की लहरें बिगड़ जाती है, उसी प्रकार तेरहवें गुणस्थान लें चौदहवें गुणस्थान में जाते समय, योग का नाश होने पर तेश्या भी सस्था नष्ट होजाती है। ..

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