Book Title: Bhagavati Sutra par Vyakhyan
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam

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Page 337
________________ [ ६८३ 1 मनुष्य वणेन बतलाये गये हैं और उन लक्षणों से यह निश्चय कर लिया जाता है कि मुझे कौन-सा रोग हुया है, इसी प्रकार शास्त्रों में लेझ्या का वर्णन पाया जाता है । शास्त्रों के अनुसार मिलान करके देखो कि मुझ में कौन-सी लेश्या उद्भूत हुई है। सम्यग्दृष्टि पुरुष लेश्यानों का विचार करके यह निश्चय करता है कि मैं स्वयमेव स्वर्ग-नरक का का हूँ। अपनी लेश्या ही फलदायिनी होती है। दूसरा कोई किसी को स्वर्ग-नरक में नहीं भेज सकता। नमि राजर्षि से इन्द्र ने कहा था कि आप राजा हैं और राजा क योग्य ही कार्य कीजिए: श्रामोसे लोमहारे, य गंठी भेए य तकरे । नगरस खमं काऊण, तो गच्छसिखत्तिया॥ श्री उत्तराध्ययन सूत्र इवां अ० अर्थात्-हे क्षत्रिय ! जो लोग प्रजा को लुटते हैं, ठगते हैं, और गाँट काटते हैं, उन्हें कठोर शिक्षा (सज़ा.) देकर . अपन गज्य में ऐसी व्यवस्था का प्रचार का दो कि आपके राज्य में कोई चोर, लुटेरा या गिरहकट न रहने पावे। ऐसे लोगों द्वारा नगर को संताप होता है। अतएव इनके द्वारा होने वाला संताप मिटाकर शान्ति का संचार कीजिए । इसके पश्चात साधु बनना । जब तक आप इन द्रव्य-चोरों को वश में नहीं करोगे तब तक भावं. चोरों को किस प्रकार अधीन कर सकोगे? प्रतण्व पहले इन चोरों का निग्रह करो। कई लोग कहते हैं- धन हमने उपार्जन किया और

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