Book Title: Bhagavati Sutra par Vyakhyan
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam

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Page 320
________________ मनुष्य-वर्णन योली में राजा की श्राशा से आई हूँ। मुझे क्षमा कीजिए। मुनि ने कहा-घबराने का क्या काम है ? मगर मुझसे दूर ही नहो। प्रभात हुश्रा । राजा ने चेलना पर ताने कसने शुरू किये । वह चोला तुम्हारे गुरु बड़े ढोंगी होते हैं। ऊपर से बड़े त्यागि बनते एर वेश्यागमन तक कात्याग नहीं करते! रानी दृढ़ श्रद्धा वाली थी। उसने कहा-महाराज, यह असंभव है। मेरे गुरु ऐसे कदापि नहीं हो सकते, श्राएके गुरू चाहे ऐसे भले ही हो। अन्त में राजा और रानी-दोनों उस मकान पर पाये। यात सारे नंगर में फैल गई थी। हजारों-लाखों शादमियों की भीड़ इकट्ठी हो गई। राजा ने उस मकान के किवाड़ खुलशये तो उसमें वेश्या के साथ राजा के ही गुरू निकले । राजा की नज़र जर उस पर पड़ी तो वह भौचक्का रह गया। यह क्या मामला है । यह तो उल्टी वलाय सिर पड़ी। श्रय रानी चेलना को अवसर मिला। वह राजा की हँसी करने लगी और राजा लजित होकर एंछताने लगा। आशय यह है कि धर्म पर जब कलेक पाता हो तो मुनि को ऐसा करना पड़ता है। व्यवहारसूत्र में उल्लेण्ड है. कि धर्म पर अपवाद पाने का अवसर उपस्थित होने पर साधु लिंग पलट कर अन्यलिंगी का भेष धारण कर ले । यद्यपि ऐसा करना माया. ही है, तथापि विशेष परिस्थिति में उसका 'आचरण करना पड़ता है, और वह भी दूसरे को धोखा देने " के लिए नहीं, वरन् प्रशस्त भाव से, धर्म की रक्षा और प्रतिष्ठा

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