Book Title: Bhagavati Sutra par Vyakhyan
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Sadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
View full book text
________________
हेकों का
न
मूलपाठवाणयन्तर-जोतिस-वेमाणिया जहा असूरकुमारा, नवरं वेयणाए पाण-मायामच्छादिट्ठा उववरणगा य अप्पवेयणतरा. प्रमा यिसम्मदिट्ठी उववनगा य महावयणतरागा भाणियब्वा जोतिस वेमाणिया।
संस्कृत-छाया-वानव्यन्तर-ज्योतिप-वैमानिका यथा असुरकुमाराः, नवरस वेदनायां नानात्वं, माथिमिथ्यादृष्ट्यु पपनकाश्च अल्पवेदनाकाः, अमाथिसम्यग्दृट्युपानकाच, महावेदनका भणितव्या ज्योतिष वैमानिकाः।
मूलार्थ-यहाँ वाण-व्यन्ता,ज्योतिपी और वैमानिक, यह सत्र असुरकुमारों के समान कहने चाहिए । इन्दझी वेदना • में भिन्नता है-ज्योतिषी और वैमानिकों में जो मायी

Page Navigation
1 ... 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364