Book Title: Barah Bhavana Ek Anushilan Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 3
________________ प्रकाशकीय (सप्तम संस्करण) डॉ. भारिल्ल की लोकप्रिय कृति 'बारह भावना : एक अनुशीलन' का यह सप्तम संस्करण प्रकाशित करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। उक्त कृति के प्रकाशन के सन्दर्भ में प्रथम संस्करण के प्रकाशकीय का निम्नांकित अंश द्रष्टव्य है - ____ डॉ साहब से मेरा अति निकट का सम्पर्क है; अतः मैं उनसे आत्मधर्म के सम्पादकीयों के रूप में वैराग्यवर्द्धक बारह भावनाओं सम्बन्धी लेखमाला चलाने का अनुरोध करता ही रहता था। उनका विचार भी 'जिनवरस्य नयचक्रम्'' के बाद इन पर लिखने का था। पर जब वीतराग-विज्ञान का प्रकाशन पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट से आरंभ हुआ तो 'जिनवरस्य नयचक्रम्' के लेखमाला को बीच में ही रोककर मेरे अनुरोध को सम्मान देते हुए डॉ. भारिल्ल ने 'बारह भावना : एक अनुशीलन' लेखमाला आरंभ की। मेरे अनुरोध पर इसमें उन्होंने आचार्यों, मुनिराजों एवं आध्यात्मिक विद्वानों की उपलब्ध लगभग सभी बारह भावनाओं पर गम्भीर आध्यात्मिक विश्लेषण प्रस्तुत किया है, जो मूलतः पठनीय है। वीतराग-विज्ञान में सितम्बर 1983 से लगातार प्रकाशित इस लेखमाला के सन्दर्भ में हमें प्रशंसात्मक पत्र मिले हैं, जिनमें इसे पुस्तकाकार प्रकाशन के भी सुझाव थे। मात्र सुझाव ही नहीं, अपितु भावुक अनुरोध भी थे। यद्यपि पहले से ही हमारा विचार क्रमबद्धपर्याय, धर्म के दशलक्षण एवं जिनवरस्य नयचक्रम् के समान इसे भी पुस्तकाकार प्रकाशित करने का था, तथापि पाठकों के सुझावों एवं स्नेहिल अनुरोधों से हमें पर्याप्त बल मिला है। इन सबका ही सुपरिणाम है कि लेखमाला विगत माह में ही समाप्त हुई और यह पुस्तकाकार कृति आपके हाथों में है। इससे अधिक शीघ्रता संभव ही न थी; क्योंकि इसका लेखन कार्य ही मार्च 1985 के आरम्भ में समाप्त हुआ है। 1. अब यह कृति 'परमभावप्रकाशक नयचक्र' नाम से उपलब्ध है।Page Navigation
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