Book Title: Bambai Chintamani Parshwanathadi Stavan Pad Sangraha Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta Publisher: Chintamani Parshwanath Mandir View full book textPage 8
________________ प्रस्तावना वाचक अमरसिंधुर जी ने यह गुटका सं० १८८८ बंबई में अपने शिष्य पं० रुपचन्द और आनन्दा के वाचनार्थ लिखा है। पदांक १२५ के बाद लेखन प्रशस्ति इस प्रकार दी गई है :-॥ सं० १८८८ वर्षे मिती फागुन सुदी १ रवौ श्री मंबुई विंदरे एकादसवीं चतुर्मासी कृता । लिखतम् वाचक अमर सिंधुर गणि पं० रुपचंद पं० अणन्दा वाचनार्थम् श्री बृहत खरतर भट्टारक गच्छे श्री जिन कुशल सूरिशाखायाम् ॥ ___वैसे यह गुटका सं० १८६१-६३ तक लिखा जाता रहा है पदांक १ से ६२ के बाद फिर नई संख्या १ से प्रारंभ होती है और नं०१७ तक संख्या देकर पिछले पदों के संख्यांक नहीं दिये गये। सं० १८६२ में जिन हर्ष सूरि जी के स्वर्गवास के बाद उनके २ शिष्य जिन सौभाग्य सूरि जी और जिन महेन्द्र सूरि जी से दो अलग शाखाएँ हुई । वाचक अमर सिंधुर इनमें से जिन महेन्द्र सूरि जी के अनुयायी रहे। __वा. अमर सिधुर जी ने उपरोक्त लेखन प्रशस्ति में सं० १८८८ में बंबई का ११ वां चौमासा लिखा है। इससे सं० १८७७ से सं० १८६१ तक तो वह बंबई में रहे, निश्चित है । फिर सं० १८६२ में पटवा के संघ में सम्मिलित हुए होंगे। उन्होंने बंबई में रहते हुए ही अधिकांश रचनाए की हैं और एक विशिष्ट और चिर स्मरणीय कार्य यह किया कि श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ का मंदिर, धर्मशाला व उपाश्रय श्रावकों को उपदेश देकर प्रतिष्ठित किया। इनके लिए ८ वर्ष तक उन्हें प्रयत्न करना पड़ा। चिंतामणि जी का मन्दिर कोठारी अमरचंद, भाई वृद्धिचन्द के पुत्र हीराचंद ने बनाया जिनका उल्लेख उन्होंने "चिंतामणि-पार्श्वनाथ स्तवन" में किया है जो इस ग्रंथ के पृष्ठ २६ में मुद्रित हुआ है। पृष्ठ ३० में प्रकाशित स्तवनों में मूल नायक प्रतिमा के सूरत से आने का उल्लेख है। सबसे अधिक स्तवन बंबई के चिंतामणि पार्श्वनाथ की स्तुति के रूप में . ही बनाए गए हैं इसलिए उसी की प्रधानता को प्रकट करने के लिए इस मंथ का नाम 'बंबई चिंतामणि पार्श्वनाथादि स्तवन संग्रह' रखा गया है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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