Book Title: Balbodh 1 2 3
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 15
________________ पाठ दूसरा पाप पाठ में आये हुए सूत्रात्मक सिद्धान्त-वाक्य - १. जो वीतराग, सर्वज्ञ और हितोपदेशी हो, वही सच्चा देव है। २. जो राग-द्वेष से रहित हो, वही वीतरागी है। ३. जो लोकालोक के समस्त पदार्थों को एकसाथ जानता हो, वही सर्वज्ञ है। ४. आत्म-हितकारी उपदेश देनेवाला होने से वही हितोपदेशी है। ५. मिथ्यात्व का नाश किए बिना धर्म का आरंभ नहीं होता। ६. आठों ही कर्म दु:ख के निमित्त हैं, कोई भी शुभाशुभ कर्म सुख का कारण नहीं है। ७. ज्ञानी भक्त आत्मशुद्धि के अलावा और कुछ नहीं चाहता। पुत्र - पिताजी लोग कहते हैं कि लोभ पाप का बाप है, तो यह लोभ सबसे बड़ा पाप होता होगा? पिता - नहीं बेटा, सबसे बड़ा पाप तो मिथ्यात्व ही है, जिसके वश होकर जीव घोर पाप करता है। पुत्र - पाँच पापों में तो इसका नाम है नहीं। उनके नाम तो मुझे याद हैं - हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह। पिता - ठीक है बेटा ! पर लोभ का नाम भी तो पापों में नहीं है किन्तु उसके वश होकर लोग पाप करते हैं, इसीलिए तो उसे पाप का बाप कहा जाता है। उसी प्रकार मिथ्यात्व तो ऐसा भयंकर पाप है कि जिसके छूटे बिना संसार-भ्रमण छूटता ही नहीं। पुत्र - ऐसा क्यों? पिता - उल्टी मान्यता का नाम ही तो मिथ्यात्व है। जब तक मान्यता ही उल्टी रहेगी तब तक जीव पाप छोड़ेगा कैसे? पुत्र - तो, सही बात समझना ही मिथ्यात्व छोड़ना है ? पिता - हाँ, अपनी आत्मा को सही समझ लेना ही मिथ्यात्व छोड़ना है। जब यह जीव अपनी आत्मा को पहिचान लेगा तो पाप भी छोड़ने लगेगा।

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