Book Title: Balbodh 1 2 3
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 17
________________ पाठ तीसरा कषाय प्रश्न - १. पाप कितने होते हैं ? नाम गिनाइये। २. जीव घोर पाप क्यों करता है? ३. क्या सत्य समझे बिना सत्य बोला जा सकता है ? तर्कसंगत उत्तर दीजिए। ४. क्या कषायें परिग्रह हैं ? स्पष्ट कीजिए। ५. द्रव्यहिंसा और भावहिंसा किसे कहते हैं? ६. पापों से बचने के लिए क्या करना चाहिए ? ७. सबसे बड़ा पाप कौन है और क्यों ? पाठ में आये हुए सूत्रात्मक सिद्धान्त वाक्य १. दु:ख का कारण बुरा कार्य ही पाप है। २. मिथ्यात्व और कषायें दु:ख के कारण बुरे कार्य होने से पाप हैं। ३. सबसे बड़ा पाप मिथ्यात्व है। ४. मिथ्यात्व के वश होकर जीव घोर पाप करता है। ५. मिथ्यात्व छूटे बिना भव-भ्रमण मिटता नहीं। ६. उल्टी मान्यता का नाम ही मिथ्यात्व है। ७. सही बात समझकर उसे मानना ही मिथ्यात्व छोड़ना है। ८. आत्मा में उत्पन्न होने वाले मोह-राग-द्वेष ही भावहिंसा हैं, दूसरों को __सताना आदि तो द्रव्यहिंसा है। ९. सत्य बोलने के पहिले सत्य समझना आवश्यक है। १०. मिथ्यात्व और कषायें परिग्रह के भेद हैं। ११. सब पापों की जड़ मिथ्यात्व और कषायें ही हैं। सुबोध - भाई तुम तो कहते थे कि आत्मा मात्र जानता-देखता है, पर क्या आत्मा क्रोध नहीं करता; छल-कपट नहीं करता? प्रबोध - हाँ ! हाँ !! क्यों नहीं करता ? पर जैसा आत्मा का स्वभाव जानना-देखना है, वैसा आत्मा का स्वभाव क्रोध आदि करना नहीं। कषाय तो उसका विभाव है, स्वभाव नहीं। सुबोध - यह विभाव क्या होता है? प्रबोध - आत्मा के स्वभाव के विपरीत भाव को विभाव कहते हैं। आत्मा का स्वभाव आनन्द है। मिथ्यात्व, राग, द्वेष (कषाय) आनन्द स्वभाव से विपरीत हैं, इसलिए वे विभाव हैं। सुबोध - राग-द्वेष क्या चीज है? प्रबोध - जब हम किसी को भला जानकर चाहने लगते हैं, तो वह राग कहलाता है और जब किसी को बुरा जानकर दूर करना चाहते हैं, तो द्वेष कहलाता है। सुबोध - और कषाय ? प्रबोध - दिन-रात तो कषाय करते हो और यह भी नहीं जानते कि ११

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