Book Title: Balbodh 1 2 3
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 20
________________ लगा और गुस्से में आकर लड्डु भी फैंक दिया। जाकर एक कोने में लेट गया। दिन भर खाना भी नहीं खाया। सबने बहुत मनाया पर वह तो घमण्डी भी था न, मानता कैसे? __ कोने में था एक बिच्छू और बिच्छू ने उसको काट खाया। उसे अपने किए की सजा मिल गई। दिन भर भूखा रहा, लड्डु भी गया और बिच्छू ने काट खाया सो अलग। क्रोधी, मानी, लोभी और हठी बालकों की यही दशा होती है। इसलिए हमें क्रोध, मान, लोभ एवं हठ नहीं करना चाहिए। इतना कहकर मैं अपना स्थान ग्रहण करता हूँ। (तालियों की गड़गड़ाहट) अध्यक्ष - (खड़े होकर) शान्तिलाल ने बहुत शिक्षाप्रद कहानी सुनाई है। अब मैं निर्मला बहिन से निवेदन करूँगा कि वे भी कोई शिक्षाप्रद बात सुनावें। निर्मला - (टेबल के पास खड़ी होकर) आदरणीय अध्यक्ष महोदय एवं भाइयो और बहिनों ! मैं आपके सामने भाषण देने नहीं आई हूँ। मैंने अखबार में कल एक बात पढ़ी थी, वही सुना देना चाहती हूँ। एक गाँव में एक बारात आई थी। उसके लिए रात में भोजन बन रहा था। अंधेरे में किसी ने देख नहीं पाया और साग में एक साँप गिर गया। रात में ही भोज हुआ। सब बारातियों ने भोजन किया पर चारपाँच आदमी बोले हम तो रात में नहीं खाते। सबने उनकी खूब हँसी उड़ाई। ये बड़े धर्मात्मा बने फिरते हैं, रात में भूखे रहेंगे तो सीधे स्वर्ग जावेंगे। पर हुआ यह कि भोजन करते ही लोग बेहोश होने लगे। दूसरों को स्वर्ग भेजने वाले खुद स्वर्ग की तैयारी करने लगे। पर जल्दी ही उन पाँचों आदमियों ने उन्हें अस्पताल पहुँचाया। वहाँ मुश्किल से आधों को बचाया जा सका। यदि वे भी रात में खाते तो एक भी आदमी नहीं बचता। इसलिए किसी को भी रात्रि में भोजन नहीं करना चाहिए। इतना कहकर मैं अपना स्थान ग्रहण करती हूँ। एक छात्र - (अपने स्थान पर ही खड़े होकर) क्यों निर्मला बहिन ? रात के खाने में मात्र यही दोष है या कुछ और भी? अध्यक्ष - (अपने स्थान पर खड़े होकर) आप अपने स्थान पर बैठ जाइये। क्या आपको सभा में बैठना भी नहीं

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