Book Title: Balbodh 1 2 3
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 14
________________ हम सुख में प्रसन्न होकर फूल न जावें और दुःख को देख कर घबड़ा न जावें, दोनों ही दशाओं में धैर्य से काम लेकर समताभाव रखें तथा न्याय-मार्ग पर चलते हुए निरन्तर आत्मबल में वृद्धि करते रहें। आठों ही कर्म दु:ख के निमित्त हैं, कोई भी शुभाशुभ कर्म सुख का कारण नहीं है, अत: हम उनके नाश का उपाय करते रहें। आपका स्मरण सदा रखें जिससे सन्मार्ग में कोई विघ्न बाधायें न आवें। हे भगवन् ! हम और कुछ भी नहीं चाहते हैं, हम तो मात्र यही चाहते हैं कि हमारी आत्मा पवित्र हो जावे और उसे मिथ्यात्वादि पापों रूपी मैल कभी भी मलिन न करे तथा लौकिक विद्या की उन्नति के साथ हमारा धर्मज्ञान (तत्त्वज्ञान) निरन्तर बढ़ता रहे। हम सभी भव्य जीव खड़े हुए हाथ जोड़कर आपको नमस्कार कर रहे हैं, हम तो आपके चरणों की शरण में आ गये हैं, हमारी भावना अवश्य ही पूर्ण हो। देव-स्तुति का सारांश यह स्तुति सच्चे देव की है। सच्चा देव उसे कहते हैं, जो वीतरागी, सर्वज्ञ और हितोपदेशी हो। वीतरागी वह है जो राग-द्वेष से रहित हो और जो लोकालोक के समस्त पदार्थों को एकसाथ जानता हो, वही सर्वज्ञ है। आत्महित का उपदेश देने वाला होने से वीतरागी, सर्वज्ञ, हितोपदेशी कहलाता है। वीतराग भगवान से प्रार्थना करता हआ भव्य जीव सबसे पहिले यही कहता है कि मैं मिथ्यात्व का नाश और सम्यग्ज्ञान को प्राप्त करूँ, क्योंकि मिथ्यात्व का नाश किए बिना धर्म का आरंभ ही नहीं होता है। इसके बाद वह अपनी भावना व्यक्त करता हआ कहता है कि मेरी प्रवृत्ति पाँचों पापों और कषायों में न जावे। मैं हिंसा न करूँ, झूठ न बोलूँ, चोरी न करूँ, कुशील सेवन न करूँ तथा लोभ के वशीभूत होकर परिग्रह संग्रह न करूँ, सदा सन्तोष धारण किए रहँ और मेरा जीवन धर्म की सेवा में लगा रहे। हम धर्म के नाम पर फैलने वाली कुरीतियों गृहीत मिथ्यात्वादि और सामाजिक कुरीतियों को दूर करके धार्मिक और सामाजिक क्षेत्र में सही परम्पराओं का निर्माण करें तथा परस्पर में धर्म-प्रेम रखें। प्रश्न - १. यह स्तुति किसकी है ? सच्चा देव किसे कहते हैं ? २. पूरी स्तुति सुनाइये या लिखिए। ३. उक्त प्रार्थना का आशय अपने शब्दों में लिखिए। ४. निम्नांकित पंक्तियों का अर्थ लिखिए : "ज्ञान भानु का उदय करो, मम मिथ्यातम का होय विनास।।" "दूर भगावें बुरी रीतियाँ, सुखद रीति का करें प्रचार ।।" "अष्ट करम जो दु:ख हेतु हैं, तिनके क्षय का करें उपाय ।।"

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