Book Title: Ashtsahastri Part 3
Author(s): Vidyanandacharya, Gyanmati Mataji
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 12
________________ ( ११ ) पृष्ठ संख्या ५४८ ५४९ ५६३ ५६७ ५७१ ५७५ ज्ञान के विशेष लक्षण और विषय को आचार्य स्पष्ट करते हैं। बौद्ध भगवान में करुणा बुद्धि मानता है किन्तु जैनाचार्य कहते हैं कि करुणा मोह की पर्याय है अतः केवली भगवान के ज्ञान का फल उपेक्षा है यह बात स्पष्ट करते हैं । ज्ञान का फल अज्ञान निवृत्ति है ऐसा आचार्य स्पष्ट करते हैं । करण और क्रिया में कथंचित् एकत्व है और कथंचित् भेद भी है जैनाचार्य इस बात को स्पष्ट करते हैं। अन्य जनों द्वारा कल्पित दस प्रकार के वाक्य के लक्षणों का निराकरण करके जैनाचार्य स्वयं निर्दोष वाक्य का लक्षण करते हैं। द्रव्याथिक और पर्यायाथिक नयों के भेद प्रभेदों का आचार्य वर्णन करते हैं। स्याद्वाद और केवलज्ञान में क्या अन्तर है ? इस बात को जैनाचार्य स्पष्ट करते हैं। नय का लक्षण करके "वह नय हेतु है" ऐसा समर्थन करते हैं । प्रमाण नय और दुर्नयों का आचार्य लक्षण करते हैं । पुनः वस्तु क्या है ? ऐसा प्रश्न होने पर आचार्य श्री समंतभद्र स्वामी कहते हैं। वस्तु का लक्षण क्या है ? ऐसा प्रश्न होने पर आचार्य उत्तर देते हैंसुनय ओर कुनय का लक्षण अनेकान्तात्मक अर्थ विधि वाक्य अथवा प्रतिषेध वाक्य के द्वारा निश्चित किया जाता है, अन्यथा नहीं वाक्य विधि रूप से ही वस्तु का कथन नहीं कर सकते हैं। वाक्य निषेध मुख से ही वस्तुतत्व का कथन नहीं कर सकते हैं। स्यात्कार ही सत्य लांछन सिद्ध होता है। जैनाचार्य स्याद्वाद की सम्यक व्यवस्था को स्पष्ट करते हैं जैनाचार्य इस ग्रन्थ के फल को बतलाते हैं । देवागमस्तोत्र उद्धृतश्लोक ५७८ . ५८३ ५८५ ५८६ ५८८ ६०२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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