Book Title: Ashtasahasri Tatparya Vivaranam
Author(s): Yashovijay Gani, Vijayodaysuri
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsun Gyanmandir निवेदन। उपाश्रय धर्मशाळाओ धार्मिक पाठशाला विगेरे धर्मस्थानोथी विभूषित श्री जावाल नगर छे. जे जावाल नगरमा प्रायः प्रतिवर्ष पूज्य मुनिमहाराजाओ चातुर्मास बीराजमान होय छे तेमज ज्यां वीतराग धर्ममां दृढ श्रद्धावंत उदार प्रकृति श्री जैन | श्वेताम्बर मूर्तिपूजक तपागच्छीय श्रावकोना लगभग पोणा बसो घर छे. जावालनी उदारता माटे एकज दृष्टांत लइए के जावालनी | बहारनी वाडीमां गूढमंडप-रंगमंडप विगैरे अंगोपांग समेत लगभग दोढ लाख रुपीआना खर्चथी त्यांना श्री संघे श्री ऋषभदेव भगवाननो शिखरबंध प्रासाद बंधाव्यो छे. जेनी त्रण वर्ष पहेला तेओए प्रतिष्ठा करावी छे. आ समय व्यापारीओ माटे कटोकटीनो होवा छतां पण प्रतिष्ठामहोत्सवमां लगभग पोणा बे लाख रुपीआनी उछामणीमां उपज थइ हती. आवी रीते जावालना अनेक भव्यजीवोए उदारतापूर्वक शासनप्रभावना करनारा भव्य जीवोने सम्यग् दर्शनना साधनभूत श्री तीर्थयात्रासंघ श्री जिनचैत्य जीर्णो| द्धार, नवीन जिनप्रासाद बंधाववा, धार्मिक पाठशाला तथा दुष्कालना विकट समये पशुओने बचाववा विगेरे धार्मिक कृत्यो कर्या छे अने करे छे. बळी जावालना श्रीसंघे तीर्थाधिराज श्री सिद्धगिरिजी भगवंतनी छायामां आवेला पालीताणा शहेरमां शेठश्री आनन्दजी कल्याणजीना ताबाना बंडामा एक विशाल धर्मशाळा पण बंधावी छे. आवा अनेक धार्मिक स्थान अने धार्मिक कृत्यो करनार धर्मनिष्ठ पुरुषोथी सुशोभित श्री जावाल शहेरमा केटलाक समय अगाउ शासन सम्राट् तीर्थोद्धारक सूरिचक्रचक्रवर्ति सर्वतंत्र स्वतंत्र जगद्गुरु श्रीतपागच्छाधिपति भट्टारक आचार्य महाराजाधिराज श्रीमद् विजयनेमिसूरीश्वरना पट्टधर अनेक गुणगणालंकृत न्यायवाचस्पति शास्त्रविशारद आचार्य महाराजश्री विजयदर्शनसूरिजी महाराज चातुर्मास बिराजमान हता ते वखते तेओश्रीए व्याख्यानमां सर्वानुयोगमय श्रीभगवती सूत्र वांच्यु हतुं ते वखते श्रावकोए उदारताथी उल्लास For Private And Personal Use Only

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