Book Title: Ashtasahasri Tatparya Vivaranam
Author(s): Yashovijay Gani, Vijayodaysuri
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रकाशकीय निवेदन सुश सज्जनवर्यो !!! विक्रमनी अढारमी सदीमां विद्यमान न्यायविशारद न्यायाचार्य अपूर्व बोधथी अतीत श्रुतकेवलि भगवंतोनुं स्मरण करावनार महामहोपाध्याय श्रीमद्यशोविजयजी गणि महाराजनो रचेलो ते आ अष्टसहस्री तात्पर्य विवरण नामनो ग्रन्थ छे. के जे आ मंथन मात्र एकज प्रति पुना डेक्कन कोलेजना भांडारकर प्राच्यविद्यासंग्रहमां छे, तेम अमारा सांभळवामां आवतां तेनी कोपी करावी लेवा अमारी इच्छा थइ अने ते इच्छाथी महापरिश्रमे ते प्रत उपरथी प्रेसने लायक मेटर ( प्रेस कोपी) तैयार कराव्यं. जैनेतर विद्वानोए पण आ प्रन्थने जोयो, जोइने जैनेतर विद्वानो पण कद्देवा लाग्या के आवो अपूर्व तर्कवादथी भरपुर अने नवीन न्याय श्रेणिथी खाएल अलभ्य प्राय ग्रन्थ विद्वज्जनोनी समक्ष जो प्रसिद्धिमां आवे तो प्रजानुं महदुभाग्य गणाय, वली न्यायादि दर्शन शास्त्र वेत्ताओमां मूर्धन्य गणाता जैनेतर पंडित वय पण आ प्रन्थनी मुक्तकंठे प्रशंसा करवा पूर्वक खुल्ला हृदयथी कहेवा लाग्या के आ एकज ग्रंथनो यथार्थ अभ्यासी दर्शनशाखोनो एक समर्थ वेत्ता बनी शके छे. आवा विचारो सांभळीने आ महान् प्रन्थने जगदुपकारार्थे प्रसिद्धिमां लाववा अमारी शुभभावना थइ मुद्रणकला कालना बखतमां मुद्रण सिवाय जैनजैनेतर प्रजामां आ महान् उपकारक ग्रन्थने प्रकाशमां लाववुं अशक्य जणाणुं जेथी ते छपाववा अमारी इच्छा थइ | शासनाधिष्ठायकोनी कृपाथी अमारी ते इच्छा आज परिपूर्ण थइ छे. आ ग्रन्थ छपाववामां जावाल श्री संघना ज्ञानखातामाथी प्राथमिक केटलीक मदद मळी छे. तेथी अमो जावाल श्रीसंघनो हार्दिक उपकार मानीए छीए. शिरोही स्टेटमां आवेला शिरोही निकटवर्ती शिखरबंध चार अने घुमटीबंध एक एम पांच भव्य जिन प्रासादो अनेक For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir

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