Book Title: Ashtasahasri Tatparya Vivaranam
Author(s): Yashovijay Gani, Vijayodaysuri
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अष्टसहस्न्या ॥१३॥ विषयः १९० योग्यानुपलब्धेरभावप्रत्यक्षे इन्द्रियसहकारिणो योग्यसहकारिसम्पन्नानुपलब्धिरूपता नैयायिकानाम् १९१ एकान्तवादिमते कर्मायसंभवः प्रतिवादितोऽष्टमकारिकया १९२ एकान्तवादिनां स्वपरवैरित्वमुपपादितम् १९३ कर्मफलसम्बन्धपरलोकादेः शून्याद्वैतवादिनोरपीष्टस्वमित्युपपादितम् १९४ एकान्तवादिनामनेकान्तप्रतिषेधेनेष्टबाध उपपादितः १९५ एकान्तत्वाभ्युपगमे जन्मासम्भवेऽप्येकान्तासध्ये कथं न जन्म्मेत्याशङ्काया: प्ररिहारः १९६ असदुत्पादे व्यलीकप्रति भासानुपरमदोष मसहमा नस्य शून्यवादिनश्शङ्का तदपाकरणञ्च १९७ शून्यवादिमते दर्शितस्य दोषस्य योगाचारसौत्रान्तिकमतयोरप्यतिदेशः १९८ क्षणिके यथा सौत्रान्तिकस्यार्थक्रियोपपत्तिप्रक्रिया स्थिरेऽपि तथा सुलभेति प्रतिवन्याऽपाकृता www.kobatirth.org पत्र पृ० प० १२९ प्र० ४ १३० प्र० ७ १३० प्र० ११ १३० प्र०] १३ १३० प्र० १४ १३० द्वि० ६ १३० द्वि० ९ १३१ प्र० २ १३१ प्र० ९ विषयः १९९ स्थिरस्य सतः क्रमशो गुणान्तराधाने एकत्वं न स्वादिति सौगतविशेषस्याशड्डा ब्युदस्ता २०० भाव एव पदार्थानामितिवादिनः कपिलस्यासतास्वित्याशङ्कया नवमकारिकाऽवतारिता २०१ कर्मण आविद्यकस्वाविशेषेऽपि विशेषो दर्शितः सौगतवैदान्तिनोः दृष्टिसृष्टिवादे तु वेदप्रामाण्याभ्युपगमानभ्युपगमकृतः सः २०२ क्षणिकपक्षे कारणगत वैजात्यकल्पन नियतप्रवृत्यनुपपश्यनुमानमात्रोच्छेदादयो दोषा व्यावर्णिता उदयनाचार्यनीत्या २०३ नवप्रकारिकया साङ्ख्यमतखण्डनम् २०४ भावैकान्ते सर्वाभावापह वात्स वस्मिकत्वादिप्रसङ्ग उद्घाटित: २०५ साङ्ख्यमतेऽप्यभावाभ्युपगमोऽस्तीत्यस्य खण्डनम २०६ जैनमते भावस्य भावरूपतोपपादिता २०७ प्रधानाद्वैतस्य खण्डम् For Private And Personal Use Only पत्र पृ० पं० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३१ द्वि० ४ १३२ प्र० ९ १३२ प्र० ११ १३४ प्र९ ५ १३४ द्वि० ८ १३४ द्वि० १० १३५ प्र० ७ १३५ प्र० ९ १३५ प्र० १३ 66 विषयसूची पत्रम् ॥ १३॥

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