Book Title: Ashtasahasri Tatparya Vivaranam
Author(s): Yashovijay Gani, Vijayodaysuri
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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विषयसूची
पत्रम्
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॥१०॥
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विषयः
१४५ जैनसिद्धान्ते मुक्ती कथञ्चिबुद्धयादिविशेषगुणानां अष्टसहन्याx
निवृत्तिः कथञ्चिदनिवृत्तिा तत्वार्थसूत्रसंवादिता ॥१०॥
१४६ आनन्दकस्वभावामिग्यक्तिमोक्ष इति चौतातित
मतस्य खण्डनम् १४७ निराम्रवचिन्तसन्तानोत्पत्तिमोक्ष इति बौद्धमत
स्य खण्डनम् १४८ कपिलादीनां विज्ञानमात्र मोक्षकारणमित्यत्र
दोषोद्घाटनम् १५९ कपिलादिभिरपि चारित्रसहितस्यैव ज्ञानस्य
मोक्षकारणत्वं स्वीकर्तव्यमित्युपसंहृतम् १५० परामिमतसंसारतत्वस्थापाकरणम् १५० मिथ्याज्ञानमात्रस्य संसारकारणत्वं पराभि
प्रेतं स्खण्डितम् १५२ अर्हत एव स्तुत्यत्वमुपसंहृतम् १५३ सर्वज्ञः क इति निश्शेतुं न शक्यत इत्याझे
पख खण्डनम्
पत्र पृ० पं० विषयः
पत्र 20 पं. १५४ सर्वज्ञस्य मोहपर्यायात्मिकेछा नास्त्येव तथापि वाचः १०३ द्वि..
प्रवृत्तिरित्युपपादितम् १५५ अहंदभिमतशासनस्य न केनापि बाध
इति दर्शितम्
१५६ प्रत्यक्षादीनां न म्याप्तिप्राहकावं किन्तु प्रमाणान्त. द्वि० १३ रस्थ तर्कस्यैवेत्युपपादितम् ।
१५७ वदीयागमसत्यत्वोपपत्तये सर्वज्ञसाधनं क्रियते १०५ प्र. १
तत्तस्यैव सर्वज्ञत्वसिद्धी सान सम्भवतीति
भट्टाक्षेपस्यापाकरणम् १०५ प्र. २ १५८ प्रत्यक्षविषयताया इन्द्रियसभिकर्षप्रयोज्यत्वेन
ज्ञानस्य न स्वात्मकप्रत्यक्ष विषयत्वमिति न्याय
मतस्य खण्डनं विवृतौ
१५९ पटत्वाद्यवच्छिन्ने तन्तुत्वादिना न कारणत्वमिति १०५ द्वि." मतस्य खण्डनम्
१६. आरभ्यारम्भकवादस्य खण्डनम् १०५ दि. १२ | १६ क्रियमाणं कृतमिति नयानुसारिणामाचतन्तुद्र
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