Book Title: Anusandhan 2013 03 SrNo 60
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ 16 आ पत्रो, आ विशेषाङ्क माटे मेळवी आपवा माटे सौ पहेलो आभार कविमित्र धुरन्धरविजयजीनो मानु. तेमणे निजी संग्रहमांथी १३ पत्रो अमने आप्या छे. हजी पण तेमना विपुल खजानामांथी पत्रो मळवानी आशा छे. बीजो ऋणस्वीकार उपाध्याय श्रीभुवनचन्द्रजीनो करवो छे. तेमणे पोताना राजस्थानप्रवास दरम्यान, घणो श्रम लईने जोधपुर, बीकानेर, नागोर आदिना खानगी तथा सरकारी ग्रन्थागारोमांथी केटलाक पत्रो मेळवी आप्या छे. त्रीजो आभार आ. श्रीविजयसोमचन्द्रसूरिशिष्यो मुनि सुयशचन्द्र-सुजसचन्द्र विजयजीनो मानु. ते बे शोधरसिक तथा उत्साही मित्रोए कोबाना कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर, ला.द. विद्यामन्दिर, सूरतना श्रीनेमिविज्ञानकस्तूरसूरि ज्ञानमन्दिर, पाटण, राधनपुर तथा अन्य विविध ज्ञानभण्डारोमांथी, अथाग महेनत/मथामण करीने अनेक पत्रो मेळवी आप्या छे, अने प्रतिलिपिपूर्वक सम्पादित पण करी आप्या छे. आ विशेषाङ्क-योजनानो महत्तम यश ते बेने ज आपवो जोईए. तेमना द्वारा मळेल पत्रो अमारा सुधी पहोंचे ते अगाऊ ज आ प्रथम भागनुं मेटर तैयार थई प्रेसमां गयुं होवाथी, ते पत्रो क्रमशः बीजा-त्रीजा विभागमा आवशे. पत्रोनी नकल तथा प्रफवाचन वगेरे करवानी महत्तम जवाबदारी मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजयजीए स्वीकारी छे तेथी घणी बधी रीते अंक स्पृहणीय थयो छे. मुनि कल्याणकीर्तिविजयजीए पण सहयोग को छे. जो के बधा पत्रोनां तमाम काव्यो वगेरे समजाई गयां छे तेवं नथी. ते कारणे पाठशुद्धिमां, पदच्छेद आदिमां भूल थई गई के रही गई होय तो ते बनवाजोग छे. जाणकारो ते सुधारे अने ते प्रत्ये ध्यान दोरे तेवी विज्ञप्ति. बीजो विभाग शक्य त्वराथी प्रगट करवानी भावना छे. हजीये जो क्यांय, कोईनीय पासे के भण्डारमां आ प्रकारनां विज्ञप्तिपत्रो होय तो तेनी नकल अमने पाठववा विनंती छे. __टाइटल २ तथा ३ उपरनां चित्रोनी फोटोकोपी मेळवी आपवा माटे साबरमतीना श्रुतोपासक श्रावक बाबुलाल सरेमलजी बेडावालानो आभार मानीए छीए. तेमना प्रयत्नथी ज कलकत्ताना गुजराती जैन श्वे. मू. पू. संघे आ फोटोकोपी आपेल छे, तथा प्रगट करवानी संमति पण आपी छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 ... 244