Book Title: Anusandhan 2012 03 SrNo 58
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 117
________________ फेब्रुआरी - २०१२ नवतत्त्व साहित्य अने एक अप्रगट चोपाई मुनिसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयौ सम्यग्दर्शननो सामान्य अर्थ थाय सारी रीते जोवू. वाचकप्रवर उमास्वातिजी महाराज तत्त्वार्थाधिगमसूत्रना प्रथम अध्यायमां सम्यग्दर्शननी विशेष व्याख्या करता कहे छे के तत्त्वोनी श्रद्धा एटले ज सम्यग्दर्शन (सू. २). अहीं प्रश्न ए थाय के तत्त्व एटले शुं ? तत्त्व एटले सारभूत पदार्थ. परमात्मा श्रीमहावीरदेवे प्ररूपित करेला धर्ममां आवां तत्त्वोने स्थान आपवामां आव्युं छे. अहीं नवतत्त्व के तेना स्वरूपनी विशेष चर्चा न करता अमे नवतत्त्व सम्बन्धी साहित्य पर प्रकाश पाड्यो छे. __पूर्वाचार्योए नवतत्त्वना बोध माटे जुदी-जुदी अनेक रचनाओ करी छे. तेमानी केटलीक पद्यस्वरूपे तो केटलीक गद्यस्वरूपे, पद्यस्वरूपे मळती रचनाओ प्रकरण, कुलक, चोपाइ, स्तवनादि रूपे छे. तो टीका, भाष्य, टबो आदि साहित्य गद्यरूपे उल्लेखनीय छे. प्राकृत, संस्कृत, गुजराती, राजस्थानी अने हिन्दी एम पांच भाषामां आ साहित्य रचायेलुं जोवा मळे छे. अज्ञातकर्तृक नवतत्त्वप्रकरणनी रचना बाद करता संस्कृत, प्राकृत भाषानी नवतत्त्वसम्बन्धी सौ प्रथम स्वतन्त्र कृति एटले ११मी सदीमां थयेला देवगुप्तसूरिजीनी रचना - नवतत्त्व प्रकरण. एज प्रमाणे देश्य भाषानी कृतिओमां सौ प्रथम कृति एटले तपागच्छीय आ. श्री सोमसुन्दरसूरि कृत नवतत्त्वप्रकरण-बालावबोध सं. १५०२नी रचना. जोके आ प्रमाणेनी नोंध प्रकाशित थयेला सूचिपत्रोने आधारे कराई छे. कोई जग्याए त्रुटि होय एम बनवा जोग छे. कदाच कोइ कृति नोंधाया वगर पण रही गइ हशे तो विद्वानो तेनी नोंध करशे. आ चोपाईना कर्ता लूंकागच्छना श्रीपूज्य तेजसिंह, तेमना शिष्य श्रीकान्ह, तेमना शिष्य पं. दाम मुनिना शिष्य मुनि वरसिंह छे. तेमणे कालावडमां सं. १७६६मां आ चोपई रची छे, अने ते ज वर्षमां त्यां ज कर्ताना शिष्य लालजी ऋषिए आ चोपईनी प्रति लखी छे, जेना परथी आ सम्पादन करेल छे. सम्पादित करेल कृति पण नवतत्वनी ज छे. कविए मूळना केटलाक

Loading...

Page Navigation
1 ... 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175