Book Title: Anusandhan 2012 03 SrNo 58
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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फेब्रुआरी
अने प्रश्नने पण समजवा तो जोईए.
प्रस्तुत पुस्तकना, पोताने 'अज्ञात' राखवानी, विचित्र गणी शकाय तेवी (केमके ग्रन्थमां पोतानुं नाम टाळ्या छतांये ग्रन्थनी जाहेरात पोताना पक्षीय सामयिक पत्रमां छपावी, तेमां पोतानुं नाम छपावेलुं जोवा मळे ज छे !) वर्तणूक धरावता सम्पादक मुनिराजे, बन्ने पक्षोने तथा तेमना प्रश्नो तर्को, समाधानो इत्यादिनो अभ्यास कर्या विना ज, अभिनिवेशपूर्वक तथा अछाजती भाषामां आधुनिक विद्वानोने ऊतारी पाडतुं लखाण कर्तुं छे, जे तद्दन अनावश्यक तेमज अनधिकृत गणाय तेवुं जणायुं छे. आवी गम्भीर चर्चाओ गीतार्थो तथा आरूढ विद्वानो माटे बाकी रहेवा दईने ग्रन्थ सम्पादन प्रत्ये ज ध्यान केन्द्रित करवुं उचित अने हितावह गणाय. सुन्दर सम्पादनकार्यने आवां अभ्यासविहोणां अने उपलकियां प्रतिपादनो दूषित करी ज शके.
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२०१२
१६७
२. सन्मतितर्क (सटीक, सविवेचन), भाग - १ थी ५, कर्ता- सिद्धसेन दिवाकरजी, टीका. - अभयदेवसूरिजी, विवे. - जयसुन्दरसूरिजी प्रका. - दिव्यदर्शन ट्रस्ट, धोळका, वि.सं. २०६७
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प्रस्तुत ग्रन्थमां मूळ अने टीकानुं विवेचनात्मक हिन्दी भाषान्तर करवामां आव्युं छे. दर्शनशास्त्रना अभ्यासीओ माटे उपयोगी प्रकाशन.
३. श्रीसमकित सडसठबोल बार प्रकारी पूजा - उमेरो करनार : मुनि रत्नयशविजय. प्र. बकुभाई मणिलाल परिवार, अमदावाद, ई. २०१२
महोपाध्याय श्री यशोविजयजी गणिए सम्यक्त्वना ६७ बोलनी सज्झाय (स्वाध्याय)नी ढाळो रची छे, जे सुप्रसिद्ध छे, अने जैनोनी आवश्यक धर्मक्रियामां बोलाय छे. आमां आत्माना सम्यग् दर्शन नामना गुणनुं वर्णन छे, परन्तु जिनेश्वर भगवाननी भक्तिनी कोई ज वात नथी.
आ ढाळोमां, आगळ-पाछळ, थोडाक दुहा तथा गीतो तेमज श्लोको उमेरीने तेने, देरासरमां भणाती (जिन) पूजानुं स्वरूप आ पुस्तकमां आपवामां आवेल छे. पुस्तकना मुखपृष्ठ उपर ज वांचवा मळे छे : “पू. महोपाध्याय श्रीयशोविजयजी महाराजा विरचित समकित सडसठ बोलनी सज्झायमा उमेरो

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