Book Title: Anusandhan 2012 03 SrNo 58
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 171
________________ फेब्रुआरी (संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द ) वात अन्य कोई स्थाने प्रायः देखाती नथी. सिद्धान्तमां तो मूल नय ५ के ७ जणाव्या छे. ज्यारे नैगमनो संग्रह - व्यवहारमां अन्तर्भाव करनारा सिद्धसेन दिवाकरजीना मते मूल नय ६ छे. ४ मूलनयनी वात तो कदाच 'नयचतुष्क'नी व्याख्या माटे ज कल्पवामां आवी होय तो शक्य छे. ★ - २०१२ १. १६५ त्रैराशिकमतनी परम्परा विशे ओक महत्त्वनो उल्लेख त्रिपुटी महाराजे जैन परम्परानो इतिहास - १, पृ. २७७ पर कर्यो छे : 'आ मत ( - त्रैराशिक ) छेवटे दिगम्बर परम्परामां भळी गयो हतो. भट्टारक आचार्य अकलङ्के दिगम्बर संघोनी व्यवस्था करी त्यारथी ते कुन्दकुन्दान्वयमां सामेल मनातो होय ओम लागे छे. घणो समय गया पछी आ परम्परामां त्रैराशिक आचार्य पद्मनन्दी थया छे. ते माटे पुण्याश्रवकथाकोषनी प्रशस्तिमां लख्युं छे के - “कुन्दकुन्दान्वये ख्याते, ख्यातो देशिगणाग्रणीः । बभौ सङ्घाधिपः श्रीमान्, पद्मनन्दी त्रिराशिकः ॥" आम क्यांक त्रैराशिकोने वैशेषिको गणाव्या छे, क्यांक आजीविको अ ज त्रैराशिक ओम कह्युं छे, तो त्रिपुटी महाराजे जणाव्युं छे तेम क्यांक त्रैराशिक जैनाचार्यनो उल्लेख छे. आ बधुं समग्रपणे जोतां ओम लागे छे के त्रैराशिकमतमां मूलभूत रीते आजीविक, वैशेषिक अने जैन अत्रणे मतने लगतां तत्त्वो पड्यां हशे. कालक्रमे त्रैराशिक परम्परामां से तत्त्वोने लीधे त्रण फांटा पड्या हो. जेमां ओक फांटो आजीविकमतमां विलीन थई गयो, बीजो फांटो वैशेषिक दर्शन तरफ ढळ्यो अने त्रीजो फांटो मूल जैनमार्ग साथे पाछो जोडाई गयो. उपरोक्त परस्पर विरोधी विधानो से फांटाओने अनुलक्षीने लागे छे. ट्रंकमां, त्रैराशिकमत अने तेने लगतां विधानो व्यापक संशोधन मांगे छे. तज्ज्ञो आ बाबतमां प्रकाश पाथरे ओवी अपेक्षा. कल्प-स्थविरावलीगत त्रैराशिकमतनी उत्पत्तिना उल्लेख- " थेरेहिंतो णं छडुलूएहिंतो रोहगुत्तेर्हितो कोसियगुत्तेहिंतो तत्थ णं तेरासिया निग्गया । " परथी पण त्रैराशिकमान्यता धरावती जैनश्रमण-परम्परानो उद्भव ज स्थविरावलीकार जणावे छे ओम कल्पी शकाय तेम छे.

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