Book Title: Anusandhan 2012 03 SrNo 58
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 172
________________ १६६ अनुसन्धान-५८ नवांप्रकाशनो १. पिण्डनियुक्ति - सटीक, टीकाकार : श्रीहरिभद्रसूरि - श्रीविराचार्य; सं. अज्ञात मुनिराज; प्र. अंधेरी गुजराती जैन संघ - मुम्बई; सं. २०६७ 'पिण्डनियुक्ति' ए जैन मुनिओनी आहारचर्या-विषयक एक धर्मग्रन्थ छे. नियुक्तिकार श्रीभद्रबाहुस्वामी छे. नियुक्ति उपर भाष्यग्रन्थ, अने ते बन्नेना विवरणरूप आ टीकाग्रन्थ छे. प्रस्तुत टीका अद्यावधि अप्रकट हती, तेने विभिन्न हस्तप्रतिओना आधारे सम्पादित करवामां आवेल छे, अने सुचारु सम्पादन द्वारा एक अपूर्व ग्रन्थ सम्पादके उपलब्ध करावी आप्यो छे. श्रीहरिभद्राचार्यनी एक महत्त्वपूर्ण अने अज्ञातप्राय रचना आ स्वरूप प्राप्त करावी आपीने सम्पादके उत्तम श्रुतसेवा करी गणाय. टीका विषे सम्पादके एवं तारण आप्युं छे के हरिभद्राचार्ये पिण्डनियुक्ति उपर सम्पूर्ण वृत्ति लखी हशे, परन्तु वीराचार्यजीना समय सुधीमां स्थापनादोष पछीनी टीका उपलब्ध न थती होवाने लीधे तेओओ अवशिष्ट अंश पूर्ण कर्यो हशे. परन्तु 'स्थापनाद्वार'ना प्रान्त भागे “कृतिर्हरिभद्राचार्यस्येति, ग्रन्थतः त्रयोदशशतानि त्रिपञ्चाशाधिकानि" एवां वाक्यो जोवा मळे छे, जे एवं मानवा प्रेरे छे के हरिभद्राचार्ये आटला अंशनी ज टीका बनावी हशे; शेष अंश पर कलम चलाववी तेमने जरूरी नहि जणाई होय. वळी, वीराचार्य पोतानी टीका रचनाना मङ्गल पद्यमां नोंधे छे के "पिण्डनियुक्तिनी हरिभद्रसूरिकृत टीकाना शेष (भाग)ने वीराचार्य यथाशक्ति स्पष्ट करे छे" तेनुं तात्पर्य पण एमज समजाय छे के हरिभद्राचार्यनी टीका-रचना आटला प्रमाणनी ज हशे. पछीथी कोईए तार्किक खुलासालेखे एवं नक्की कर्यु होय के टीका अधूरी रहीने हरिभद्रसूरि दिवंगत थतां वीराचार्ये आ टीकापूर्ति करी छे. अलबत्त, बन्ने तरफ सम्भावना ५०-५० टका गणी शकाय. नियुक्तिकार कोण ? ते विषे हालमां बे मत प्रवर्ते छे. पुरातन परम्परा प्रमाणे १४ पूर्वधर भद्रबाहुस्वामी तेना प्रणेता छे. आधुनिक विद्वानोना अभिप्राय प्रमाणे द्वितीय भद्रबाहुनी ओ रचना छे. आधुनिकोना मनमां केटलाक प्रश्नो छे, जेनो उत्तर शोधता शोधतां तेओ आवा अनुमान तरफ ढळ्या छे. तेमना तर्क

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