Book Title: Anusandhan 2012 03 SrNo 58
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 142
________________ १३६ अनुसन्धान-५८ है । कथाओं का विस्तृत रूप भाष्यों की अपेक्षा भी चूणि या टीका साहित्य में ही अधिक मिलता है । चूर्णियां जैन कथाओं का भण्डार कही जा सकती है। चूर्णि साहित्य की कथाएं उपदेशात्मक तो है ही, किन्तु वे आचारनियमों के उत्सर्ग और अपवाद की स्थितियों को स्पष्ट करने की दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है । किन परिस्थितियों मे कौन आचरणीय नियम अनाचरणीय बन जाता है इसका स्पष्टीकरण चूर्णी की कथाओं में ही मिलता है । इसी प्रकार विभिन्न परिस्थितियों में किस अपराध का क्या प्रायश्चित्त होगा, इसकी भी सम्यक् समझ चूर्णियों के कथनकोंसे ही मिलती है। इस प्रकार चूर्णीगत कथाएं जैन आचारशास्त्र की समस्याओंके निराकरण में दिशा-निर्देशक है। ___ जहां महाराष्ट्री प्राकृत के कथा साहित्य का प्रश्न है, यह मुख्यतः पद्यात्मक है और इसकी प्रधान विधा खण्डकाव्य, चरितकाव्य और महाकाव्य है। यद्यपि इसमें धूर्ताख्यान जैसे कथापरक एवं गद्यात्मक और भी उपलब्ध होते है । इस भाषा में सर्वाधिक कथा साहित्य लिखा गया है और अधिकांशतः यह आज उपलब्ध भी है। प्राकृत के पश्चात् जैन कथा-साहित्य के अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ संस्कृत भाषा में भी उपलब्ध होते हैं । दिगम्बर परम्परा के अनेक पुराण, श्वेताम्बर परम्परा में हेमचन्द्र का त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र आदि अनेक चरित्र काव्य संस्कृत भाषा में लिखे गये है। इसके अतिरिक्त जैन नाटक और दूतकाव्य भी संस्कृत भाषा में रचित है । दिगम्बर परम्परा में वराङ्गचरित्र आदि कुछ चरित्रकाव्य भी संस्कृत में रचित है । ज्ञातव्य है कि आगमों पर वृत्तियां और टीकाएं भी संस्कृत भाषा में लिखी गई है । इनके अन्तर्गत भी अनेक कथाएं संकलित है । यद्यपि इनमें अधिकांश कथाएं वही होती है जो प्राकृत आगमिक व्याख्याओं में संग्रहित है । फिर भी ये कथाएं चाहे अपने वर्ण्य विषय की अपेक्षा से समान हो, किन्तु इनके प्रस्तुतीकरण की शैली तो विशिष्ट ही है। उस पर उस युग के संस्कृत लेखकों की शैली का प्रभाव देखा जाता है । इसके अतिरिक्त अनेक प्रबन्ध ग्रन्थ भी संस्कृत मे लिखित है । संस्कृत के पश्चात् जैन आचार्यों का कथा-साहित्य मुख्यतः अपभ्रंश और उसके विभिन्न रूपों में मिलता है। किन्तु यह ज्ञातव्य है कि अपभ्रंश

Loading...

Page Navigation
1 ... 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175