Book Title: Anusandhan 2012 03 SrNo 58
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 158
________________ १५२ अनुसन्धान-५८ जाय छे. कारण के वर्तमान समग्र संघ आर्य वज्रना पट्टधर आर्य वज्रसेननी सन्तति छे, ज्यारे देवर्द्धिगणी आर्य वज्रना शिष्य आर्य रथनी परम्परामां छे. हवे आ गुरुपरम्परामां आर्य वज्रना दीक्षागुरु सिंहगिरिजी होवाथी, तेमना विद्यागुरु तरीके सर्वत्र प्रसिद्ध अवा भद्रगुप्तसूरिजी- पण नाम न मळतुं होय, तो तेमां श्रीगुप्ताचार्यना उल्लेखनो तो सवाल ज क्यां रहे छे ? वाचकवंश-पट्टावलीमा क्रमशः थयेला वाचनाचार्योनां नाम आपवामां आवे छे. आ वाचनाचार्यो संघनायक ज होय ओ जरूरी नथी. हा, संघमां तेओर्नु स्थान अवश्य आगळ पडतुं होय छे. ओ ज रीते क्रमशः थयेला बे वाचनाचार्यो परस्पर गुरु-शिष्य होय ते पण जरूरी नथी. अेक वाचनाचार्यना स्वर्गवास बाद वर्तमान श्रमणसमुदायमां जे सौथी वधु श्रुतज्ञान धरावता होय तेमने वाचनाचार्य तरीके नियुक्त करवामां आवे छे. जेम के आर्य वज्र पछी वाचनाचार्य तरीके आर्यरक्षितनुं नाम मळे छे, के जे आर्य वज्रना त्रण मुख्य पट्टधरोथी जुदा छे. हवे, गुरुपरम्पराना वर्णनमां जेम श्रमणसंघना चोक्कस हिस्साना वडीलने ज ते जूथनी परम्परामां संघनायक तरीके वर्णववामां आवता होय छे, अने ओ संघनायक सुधर्मास्वामीजीनी जेम समग्र संघ, आधिपत्य न करता होय तो पण चोक्कस विभागना आधिपत्यने लीधे संघनायक ज गणाता होय छे, अने तेथी गुरुपट्टावलीओमां संघनायक-गुरुओनां नामोमां परस्पर घणो तफावत जोवा मळे छे; तेम वाचक परम्परामां पण मुख्य बे प्रवाह जोवा मळे छे. एक गणना अनुसार, मुख्यत्वे उत्तर-पूर्व भारतवर्षमां वर्तता श्रमणसंघना जे वाचनाचार्य बनता हता, ते वाचनाचार्य ते काळना उत्कृष्ट श्रुतधर न होय तो पण, ते क्षेत्रमा वर्तमान श्रमणसमुदायमां तेओ ज उत्कृष्ट श्रुतधर अने व्यापक प्रभाव धरावनार होवाथी, तेमने ज ते गणनामां मुख्य स्थान आपवामां आवतुं हतुं.२ माथुरी १. “थेररस णं अञ्जवइरस्स इमे तिन्नि थेरा अंतेवासी अहावच्चा अभिण्णाया होत्था । तं जहा- थेरे अज्ज वइरसेणिए, थेरे अज्ज पउमे, थेरे अज्ज रहे।" - कल्पस्थविरावली प्रबन्ध, पट्टावली जेवा ऐतिहासिक ग्रन्थोमां गुणसुन्दर, रेवतिमित्र जेवा महान श्रुतधर भगवन्तोना जीवनने लगती घटनाओनो उल्लेख नथी मळतो. ते वस्तु सूचवे छे के आ भगवन्तोनुं विचरणक्षेत्र बहु दूर- होवाने लीधे तेओ व्यापक जैनसमाजमां अज्ञात ज रह्या हशे. नन्दिसूत्रनी स्थविरावलीमां आ भगवन्तोनो अनुल्लेख होवाने लीधे ते सम्बन्धे प्रस्तुत अनुमान करवामां आव्युं छे.

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