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फेब्रुआरी - २०१२
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४. उत्तर मध्ययुग या अपभ्रंश एवं मरूगुर्जर युग- ईसा की १४ वीं शती से १८ वी शती तक ।।
५. आधुनिक भारतीय भाषा युग – ईसा की १९वीं शती से वर्तमान तक ।
___ भारतीय इतिहास की अपेक्षा से इन पाँच कालखण्डों का नामकरण इस प्रकार भी कर सकते है – १. पूर्वप्राचीन काल २. उत्तरप्राचीन काल ३. पूर्वमध्य काल ४. उत्तरमध्य काल और ५. आधुनिक काल । इनकी समयावधि तो पूर्ववत् ही मानना होगी । यद्यपि कहीं-कहीं कालावधि मे
ओव्हर लेपिंग (अतिक्रमण) है। फिर भी इन कालखण्डों की भाषाओं एवं विधाओं की अपेक्षा से अपनी-अपनी विशेषताएं भी है। आगे हम इन काल खण्डों के कथा साहित्य की विशेषताओं को लेकर ही कुछ चर्चा करेंगे
प्रथम कालखण्ड मे मुख्यतः अर्धमागधी प्राचीन आगमों की कथाएँ आती है - ये कथाएँ मुख्यतः आध्यात्मिक उपदेशों से सम्बन्धित है और अर्धमागधी प्राकृत में लिखी गई हैं । दूसरे ये कथाएँ संक्षिप्त और रूपक के रूप में लिखी गई है । जैसे - आचाराङ्ग में शैवाल छिद्र और कछुवे द्वारा चादनी दर्शन के रूपक द्वारा सद्धर्म और मानवजीवन की दुर्लभता का संकेत है। सूत्रकृताङ्ग मे श्वेतकमल के रूपक से अनासक्त व्यक्ति द्वारा मोक्ष की उपलब्धि का संकेत है । स्थानाङ्गसूत्र में वृक्षों, फलों आदि के विविध रूपकों द्वारा मानव-व्यक्तित्व के विभिन्न प्रकारों को समझाया गया है । समवायाङ्ग के परिशिष्ट में चौवीस तीर्थङ्करों के कथासूत्रों का नाम-निर्देश है। इसी प्रकार भगवती में अनेक कथारूप संवादो के माध्यम से दार्शनिक समस्याओं के निराकरण है। इसके अतिरिक्त आचाराङ्ग के दोनों श्रुतस्कन्धों के अन्तिम भागों मे सूत्रकृताङ्ग के षष्टम अध्ययन में और भगवती में महावीर के जीवनवृत्त के कुछ अंशो को उल्लेखित किया गया है । इनके कल्पसूत्र
और उसकी टीकाओं साथ तुलनात्मक अध्ययन से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि महावीर के जीवन के कथानकों में अतिशयों का प्रवेश कैसे-कैसे हुआ
जैन कथासाहित्य की अपेक्षा से ज्ञाताधर्मकथा की कथाएँ अति