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फेब्रुआरी - २०१२
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१. जन सामान्य का मनोरञ्जन कर उन्हें जैन धर्म के प्रति आकर्षित
करना । २. मनोरञ्जन के साथ-साथ नायक आदि के सद्गुणों का परिचय देना।
शुभाशुभ कर्मों के परिणामो को दिखाकर पाठकों को सत्कर्मों या
नैतिक आचरण के लिए प्रेरित करना । ४. शरीर की अशुचिता एवं सांसारिक सुखों की नश्वरता को दिखाकर
वैराग्य की दिशा में प्रेरित करना । ५. किन्ही आपवादिक परिस्थितियों में अपवाद मार्ग के सेवन के
औचित्य और अनौचित्य को स्पष्ट करना । पूर्वभवों या परवर्तीभवों के सुख-दुःखों की चर्चा के माध्यम से
कर्म सिद्धान्त की पुष्टि करना । ७. दार्शनिक समस्याओं का उपयुक्त दृष्टान्त एवं संवादों के माध्यम से
सहज रूप मे समाधान प्रस्तुत करना जैसे - आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि के रायपसेनीय के कथानक में राजा के तर्क और केशी द्वारा उनका उत्तर । इसी प्रकार क्रियमान कृत या अकृत है - इस सम्बन्ध में जमाली का कथानक और उसमें भी साड़ी जलने
का प्रसंग ।
इस प्रकार हम देखते है कि जैन कथा साहित्य बहुउद्देशीय बहु आयामी और बहुभाषी होकर भी मुख्यतः उपदेशात्मक और आध्यात्मिक रहा है । उसका प्रमुख उद्देश्य निवृत्ति मार्ग का पोषण ही है । इस प्रकार वह सोद्देश्य और आध्यात्मिक मूल्यों का संस्थापक रहा है और लगभग तीन सहस्राब्दियों से निरन्तर रूप से प्रवाहमान है ।
संस्थापक निदेशक प्राच्यविद्यापीठ दुपाड़ा रोड, शाजापुर (म.प्र.) ४६५००१