Book Title: Anusandhan 2012 03 SrNo 58
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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११८
अनुसन्धान-५८
सामंतोपक्रियापातकी, ठांम उघाडा राख्या थकी, नेसथीया अन्य पासइ सस्त्र घडाय, साहथीया पोतें सस्त्र कराय ॥७८।। जीव अजीव पासे आणाय, आंणवणीक्रिया कहिवाय, वीयारणीयाक्रिया जांण, फल मोटा वीदारें आण ॥७९।। जिमतां भाणामांहि माखी मरइ, अणाभोगीक्रिया इम करइ, जिण कीधइ लोकमां मूंडो थाय, अणवकंखीयाक्रिया कहिवाय ॥८०॥ अन्य पासे जे पाप कराय, अनापोगीक्रिया लगाय, घण जननो मन एक ज थाय, सामुदाणीक्रिया भणाय ॥८१॥ मित्रादि अर्थे जे करइ कर्म, पेजवतीया एहनो मर्म, अबोलणइ जे कर्म बंधाय, दोसवतीया ते कहिवाय ॥८२।। अप्रमादीने लागे जेह, ईरियावहीयाक्रिया तेह, ए बेतालीस आश्रव द्वार, समदीठी छांडइ निरधार ॥८३।।
दुहो भेद सतावन हवइ कहुं, संवरना जगसार, मनसुध पालें प्रेमसुं, ते उतरे भवपार ॥८४।।
चोपइ
झुंसर प्रमाणे जोवे जेह, इर्यासुमति कहीए तेह, सावध टालें निरवद्य उचरइ, भाषासुमति इणिपरि धरइ ॥८५॥ दोषरहित जें लीयें आहार, एषणासुमति कहीए जगसार, लीयें-मुकें जयणायें करी, आदांननिखेपणा मन-चित्त धरी ॥८६॥ जीव जतन करी परीठावइ, परठावणि सुमति इम नवइ, मनसाखे नवि करइ पाप, मनगुपति ते इणिपरि थाप ॥८७॥ सावधवचन बोलइ नही, वचनगुपति ते कहीए सही, संवर राखे आंपणी काय, कायासुमति ते कहिवाय ॥८८।। आरंभ न करे भुखां मरइ, सूधा परिसहो इणिपरि धरइ, काचो पांणी न पीय लगार, तृस खमे तृषापरिसहे सार ॥८९॥ सीत परीसहें सीत ज खमे, अग्नि न वांछे काया दमे, उश्न परीसहे लागे ताप, सनांन न वांछइ कहीए आप ॥९०॥

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