Book Title: Anusandhan 2012 03 SrNo 58
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
११४
अनुसन्धान-५८
बारे मासे वरसज गिणौ, पांचे वरसे युग इम सुणो, वीसे युगे सोनो मांन, काल असंख ते इणिपरि जांन ॥ २५ ॥ पुदगलना ते च्यार प्रकार, खंध देस परदेस विचार, चउथो भेद ते परमांणुयो, खंध देस परदेसथी जुयो ||२६|| ए चउद भेद अजीवनां जांण, समदीठी ते करइ प्रमाण, हवइ नवविध पुन्यना सार, उपारजवानो कहुं वीचार ॥२७॥ दांनमांहि उतम अन्नदांन, बीजो पुन्य पांणि परधांन, स्थानकपूज्य ते त्रीजो सही, सेज्या पाट - पाटिलो गही ॥२८॥ वस्त्रदांन दीजे सीतकाल, पून्यइ फले मनोरथमाल, मणपून्य वचपून्य कायपून्य जांण, नवमो नमस्कारपुन्य वखांण ॥२९॥ ए नव पून्य उपार्जवानो ठांम, तेहना कह्या जुजूया नांम, पून्य भोगव्यानो कहुं प्रकार, बितालीसे भेदे सार ॥३०॥ सातावेदनी जेहथी सूख थाय, उचगोत्र धुर आसन लहवाय, मनुष्यगति मनुष्यानुपूरवी, गति जातो नवि भूले भवी ॥३१॥ देवगति देवपूरवी जांण, पंचंद्रीनी जाति प्रमांण, उदारीकसरीर मनिष तिर्यंच, विक्रय देवता - नारकी संच ॥ ३२॥ आहारक चउदपूरवीने होय, तेजस आहार पचइ ते सोय, कारमण ते कोदालीरूप, उदारीक अंगोपांगसरूप ॥३३॥ विक्रयअंगोपांग ज थुणुं, आहारकअंगोपांग ए भणुं, वज्रऋषभनाराचसंघयण, जिनजीना ए साचा वयण ||३४|| वज्र कहतां खीली जांण, ऋषभ ते पाटों वखांण, नाराच बेहूं पासे मंकडबंध, प्रथम संघयण ते इणिपरि संध ||३५|| वांम ढीचणथी जमणो खवो, दाहिण ढीचण डावो खवो,
मस्तकअग्रथी पालठी अंत, जमणा ढीचणथी डावो ढीचण जंत ||३६|| समचउरंस ए संस्थान, चिहुं भागे सरीखो मांन,
शुभवर्ण रातो पीलादि कह्यो, शुभरस ते मधुरादि लो ॥३७॥ शुभगंध कपूर चंपादि जेह, शुभस्फरश सूहालो तेह,
अगरूलघु भारी हलुयो सही, पराघात ते अनेरो जीपें नही ||३८||

Page Navigation
1 ... 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175