Book Title: Anusandhan 2011 09 SrNo 56
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 5
________________ पादटीपमां पेलो यथार्थ पाठ, सम्पादकीय नोंध साथे मूकी देवो जोईए. सम्मार्जननो आ पण एक प्रकार गणाय. परन्तु, मूळ रचनारे के लेखके जे पाठ रच्यो के स्वीकार्यो होय, ते सम्पादकने खोटो/अयोग्य लागे, तो तेथी तेणे ते पाठ बारोबार बदली/सुधारी काढवानुं साहस न करवू जोईए. तेमनी अपेक्षा आपणने न समजाती होय अने वास्तवमां तेओ ज साचा होय, एवी शक्यता पण होवानी ज; अने तेनी उपेक्षा करीने चालीए तो ते दुस्साहस ज बनी रहे. सार एटलो के सम्मार्जन-संशोधन-सम्पादन करनार क्यारेय मनमानी रीते वर्ती शके नहि; पण पोतानी जागृत विवेकशीलता साथे ज ते काम करी शके, अने तो ज तेनुं संशोधन उपादेय बने.

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