Book Title: Anusandhan 2011 09 SrNo 56
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ अनुसन्धान-५६ थाय छे, तेम आ 'स्तव'ना कर्ता पण केटला प्राचीन हशे ते पण अनुमानी शकाय छे. ३७. गा. २१०-२१८ मेयज्ज (मेतार्य के मैत्रेय) ऋषिनं गुणगान करे छे. तेमनो विख्यात जीवन प्रसङ्ग आमां वर्णवायो छे : सोनीने त्यां आहारार्थे गमन; क्रोंच पंखी द्वारा सुवर्णयव चणी जवा; सोनीनी पृच्छाना जवाबमां मुनिनुं मौन, क्रोंचनुं नाम न आपq; सोनी द्वारा मुनिना मस्तके एवं कठोर बन्धन के जेथी तेमनी बे आंखो फूटी गई, तो पण अचल अवस्था अने आत्मध्यानमां लीन; छेवटे त्यां ज केवलज्ञान पामीने निर्वाणपद पाम्या. ३८. गा. २१९-२२३ अभयकुमारनुं वर्णन आपे छे. गर्भमां हता त्यारे ज तेमनी माताने सहु जीवोने अभयदान आपवानो मनोरथ थयो हतो, ते पाळ्यो पण हतो; तेथी ज तेमनुं नाम 'अभय' पाडवामां आव्यु. पदानुसारी लब्धिना ते स्वामी हता. (एक पद बोलो,तो ते आलुं सूत्र, आखो पाठ, आखो ग्रन्थ बोली जाय तेवी शक्ति). तेमणे वर्धमानस्वामी पासे दीक्षा ग्रहण करी हती. अहीं गा. २२१मां 'सेणियकुलकायलयं' एवो प्रयोग थयो छे : श्रेणिकना कुलनी जेनी कायलता छे ते, एम अर्थ बेसे. ३९. गा. २२४-३१मां जम्बूकुमार मुनिनी स्तवना थई छे. प्रभव आदि चोरोनो प्रसङ्ग, ८ कन्या साथे लग्न अने एकज रातमां तेमनो त्याग, ते सर्व सहित दीक्षा-आ बधुं आमां वर्णन थयुं छे. ४०. गा. २३२-३६मां ढंढ अणगार (प्रसिद्ध नाम 'ढंढण')नुं वर्णन छे. ४१. गा. २३७-४१मां गङ्गदत्त मुनिनुं वर्णन थयुं छे. तेमणे केटली समृद्धिनो त्याग कर्यो, तेनी वात आमां थई छे. ४२. गा. २४२-४६ मां नागदत्तनी वात छे. तेना पिता मरीने नागलोकमां उत्पन्न थया होई, अने तेमने आ पुत्र पर विशेष स्नेह होई, तेओ नागकन्याओ साथे तेने परणावे छे. कालान्तरे ते कन्याओने पण त्यजीने ते दीक्षा ले छे. ४३. गा. २४७-५५मां चिलातपुत्र मुनिनुं स्तवन थयेल छे, त्रण पदो सांभळीने धर्म अने समाधिने वर्या. देहभाव तजी दीधो. बे आंखो खेंची काढवामां आवी छतां विचलित न थया. आंखोथी वहेतां लोहीनी गन्धथी आवेली कीडीओए आखा देहने फोली खावा छतां ते चळ्या नहि. ४ लोकपालो पण तेमने प्रणाम करी गया. अढी रात्रि-दिवसमां ज तेओ पार

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 187