Book Title: Anusandhan 2011 09 SrNo 56
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ ऑगस्ट २०११ पामीने देव थया हता. ४४. गा. २५६-५९ कुरुदत्त ऋषिने वर्णवे छे. ते दीक्षा लई स्मशानमां ध्यान धरता ऊभेला, त्यारे चिताना अग्नि वडे बळी जवा छतां विचलित न थया. अहीं पण 'हत्थिणपुरकायलयं ' (२५८) प्रयोग थयो छे. ४५. गा. २६०-६४मां आनन्द ऋषिनी वात थई छे. आ मुनि महावीरस्वामीना समयना छे. तेनी सम्पत्ति एटली बधी हती, के राणी चेल्लणा अने राजा श्रेणिकना मान्यामां न आववाथी तेओ जाते तेमना घरे तेमनी सम्पत्ति जोवा गयेला ! (गा. २६२). तेमनी साथे तेमनां पत्नीए पण दीक्षा लीधी हती. ९ ४६. गा. २६५-७०मां वज्रस्वामीनुं गुणवर्णन थयुं छे. तेमणे आकाशगामिनी विद्यानो उद्धार कर्यो. ते अन्तिम श्रुतधर हता. ते आकाशमार्गे (संघने) माहेश्वरी नगरीथी शेषानगरीए लई गया हता. बाल- अवस्थामां, देवो ( यक्षो) द्वारा अपाता आहारनो तेमणे निषेध करेलो, सुविहित १७०० साधुओ साथे तेणे अनशन कर्तुं हतुं. गा. २७०मां जणाव्या प्रमाणे तो ते सर्वार्थसिद्ध विमाने गया हता. अथवा तो सर्वार्थनी सिद्धिना ते स्वामी बन्या हता, एम पण अर्थ करी शकाय. गा. २७१मी थोडीक अशुद्धिवाळी जणाय छे. तेमां कर्ता द्वारा उपसंहार थयो छे. कर्ताए पोतानुं नाम लखवानो आग्रह दर्शाव्यो नथी. बन्ने ताडपत्र प्रतिओना फोटा लेवडावी देवा बदल खम्भात श्रीशान्तिनाथ ताडपत्र भण्डारना कार्यवाहकोनो आभारी छु. आ रचनानो ख्याल नहोतो. डॉ. ढांकीसाहेबे एक प्रसंगे सूचव्युं के तमे आ एक प्राचीन रचना हजी अप्रगट छे ते जुओ अने नकल ऊतारीने प्रसिद्ध करो. खम्भातना सूचिपत्रमां पुण्यविजयजी महाराजे तेना विषे नोंध आपी छे. आथी आ रचना माटे जिज्ञासा जागी, जेनुं परिणाम अत्रे प्रस्तुत छे. आवी अद्भुत कृति प्रत्ये ध्यान दोरवा बदल डॉ. मधुसूदन ढांकीनो पण आभारी छु. आ कृतिनी हस्तप्रत क्यांक होय अने कोईना ध्यानमां आवे तो ते तरफ ध्यान दोरे अथवा तेनी नकल प्राप्त करावी आपे तेवी विज्ञप्ति.

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 187