Book Title: Anusandhan 2011 09 SrNo 56
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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ऑगस्ट २०११
मळतो नथी, ते ध्यानमा लेवा योग्य छे.
३२. गा. १७०-७८मां प्रद्युम्न ऋषिनी स्तवना छे. वर्णन मजानुं छे. एक नवी वात ए छे के राजकुमार प्रद्युम्न विमानमां बेसीने फूल वरसावतो नेमिनाथ पासे आवे छे. (गा. १७६). ३३. गा. १७९-८६ शाम्बकुमार मुनिनुं स्तवन करे छे. आ रचनामां एक प्रयोग ध्यान आपवा जेवो छ : 'बारवई कायलयं' (गा. १७९). अर्थात् द्वारावतीमां जेनी काया निर्माई छे – द्वारावतीना वासी. एकथी वधु स्थाने आवो प्रयोग थयेल छे. धगधगती शिला उपर एमणे अणसण आहेलु, अने आखा देह पर थयेल फोडलाओमांथी रुधिर झरतुं होवा छतां ते विचलित नहोता थया, एवं गा. १८३-८४नुं वर्णन स्तब्ध करे तेवू
३४. गा. १८७-९१मां कालाश्रितवेशिक मुनिनुं स्वरूप बताव्युं छे. 'मोगल्ल' (मोकल) पर्वत-शिखर पर तेमणे अनशन कर्यु त्यारे शियाळणीए तेमना शरीरने फाडी खाधुं हतुं, तोय ते चळ्या न हता (गा. १९१). ३५. गा. १९२-९६ हरिकेश मुनिने वर्णवे छे. शूद्र कुलमां पेदा थवा छतां तेमणे दीक्षा लीधेली. काळोतरो झेरी सर्प तेमना वैराग्य, कारण बनेलो (गा. १९४). कोशलदेशनी राजकन्या परणवा आवी तो तेनो अस्वीकार ज को. एक सहस्र तेमनी सेवामा रहेता हता.
३५. गा. १९७-२०२मां सुकोशल मुनिनी स्तुति थई छे. यौवनवयमां ज श्रेष्ठ स्त्रीनो त्याग करीने दीक्षा लीधी. यावज्जीव छ? (२ उपवास)- तप कर्यु. गत जन्मनी माता मरीने वाघण थयेली अने तेणे पोतानां बच्चां माटे, पोताना जन्मान्तरना आ पुत्र (सुकोशल) ने फाडी खाधो ! मरीने ते सर्वार्थसिद्धे देव थया. ३६. गा. २०३-९मां लंचक ऋषि- वर्णन छे. आ नाम पण अल्प प्रसिद्ध छे. ते विशालानगरीनी श्रेष्ठ व्यक्ति हता. गा. २०५मां थयेल वर्णन अनुसार, 'स्तव'ना कर्ता आंखे देखाती वात वर्णवतां होय तेम जणाय छे. तेमणे नोंध्युं छे के आजे पण विशालामां, ज्यां लंचक मुनि प्रतिमाध्याने ऊभेला त्यां, तेमना नामे, 'लंचगसिवोवगास' (कोई स्थानविशेष के कोई मार्ग के चोक जेवू) छे. आ नोंध बहु महत्त्वनी छे. एनाथी जेम लंचग ऋषिनो इतिहास पुरवार १. राजस्थानमां मोकलसर क्षेत्र छे. त्यां 'मोकल'-पहाडी छे, ते आ हशे ?

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